नजरिया बदला है, तो नजारा भी बदलेगा !

shivraj-s_सरकार ने वहां की तरक्की और समृध्दि तो देख ली लेकिन तरक्की की इस चमचमाती दीवार पर उभरी पतन की उस इबारत को नहीं पढ़ पाई । इन देशों में आत्मिक और पारिवारिक सुख का अकाल है । मानवता, संवेदनशीलता भी दिखाई नहीं देती । चारों तरफ दिखाई देती है तो खुदगर्जी।     DINESH-JOSHI1राजनीतिक डायरी दिनेश जोशी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की हाल ही में संपन्न जापान और दक्षिण कोरिया की यात्रा के बाद खेती-किसानी के प्रति राज्य सरकार का नजरिया बदल गया है । पहले खेती-किसानी को बढ़ावा देना उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता थी, लेकिन अब खेती का बोझ उद्योग धंधों पर डालने की वकालत कर रही है । सरकार के नजरिये में यह बदलाव जापान और दक्षिण कोरिया की भौतिक तरक्की देखकर आया है । उसकी दलील है कि जब जापान और कोरिया की 90-95 प्रतिशत आबादी कृषि पर अवलंबित थी तो वहां भयंकर गरीबी थी । लेकिन अब वहां उल्टा है, खेती पर सिर्फ 4-5 प्रतिशत आबादी निर्भर है और 95 प्रतिशत से ज्यादा आबादी उद्योग धंधों में लगी हुई है । इस बदलाव से इन दोनों राज्यों में गजब की समृध्दि आई है। वहां पर प्रति व्यक्ति औसत आमदनी का आंकड़ा भी लाखों डालर में है, जबकि हमारे यहां 60-65 हजार रूपये भी नहीं है । सरकार ने वहां की तरक्की और समृध्दि तो देख ली लेकिन तरक्की की इस चमचमाती दीवार पर उभरी पतन की उस इबारत को नहीं पढ़ पाई । इन देशों में आत्मिक और पारिवारिक सुख का अकाल है । मानवता, संवेदनशीलता भी दिखाई नहीं देती । चारों तरफ दिखाई देती है तो खुदगर्जी । जापान और दक्षिण कोरिया की सरकारें भले ही भविष्य की इस भयावहता को नहीं देख पा रही हैं, लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसे भलीभांति पढ़ लिया । उन्होनें इसका जिक्र क्षमावाणी कार्यक्रम में अपने संबोधन में किया । बकौल मुख्यमंत्री जापान में 30 प्रतिशत से ज्यादा लोग शादी करना पसंद नहीं करते । क्योंकि वहां का जीवन स्तर इतना ऊंचा है कि वे दूसरे साथी अथवा परिवार का खर्चा वहन करने का साहस नहीं कर पा रहे हैं । वहां बुढ़ापा बहुत कष्टमय है । बच्चों की संख्या इतनी कम है कि वे अपनी यात्रा के दौरान उनकी किलकारियां सुनने को तरस गये । जापान और दक्षिण कोरिया की भौतिक समृध्दि का यह कृष्ण पक्ष देखने के बावजूद मप्र को उन जैसा बनाने की बात करना अजीब लगता है । मप्र प्रगति करे, यहां के लोगों में आर्थिक समृध्दि आये लेकिन यदि इसकी कीमत खेती-किसानी को चुकाना पड़े तो यह खतरनाक होगा। उद्योग धंधों और विनिवेष को बढ़ावा देने से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, विकास दर के साथ-साथ प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ेगी । खेती का बोझ भी कम होगा । यह बात सौं फीसदी सच है । लेकिन यह बात भी उतनी ही सच है कि खेती की जमीन और रकबा घटेगा । जैसे जैसे उद्योग बढ़ेंगे खेती का रकबा और उत्पादन सिकुड़ता जायेगा । एक समय ऐसा आयेगा कि लोग लहलहाते खेतों को देखने के लिए तरस जायेंगे । हरियाली भी घट जायेगी । सभी तरह के प्रदूषण का विस्फोट होगा। पर्यावरण को जो क्षति पहुंचेगी, उसका अनुमान लगाने भर से कलेजा कांप उठता है । भौतिक समृध्दि के साथ तमाम तरह की विकृतियां आयेगी । सबसे ज्यादा नुकसान हमारी संस्कृति और परिवार नामक संस्था को पहुंचेगा । अब हमें यह तय करना होगा कि हमें भौतिक प्रगति की अंधी दौड़ में शामिल होना चाहिए अथवा संतुलित विकास की डगर पर चलना चाहिए । जो हमारी प्राणाधार कृषि को पुष्पित-पल्लवित करते हुए हमारी सुख शांति बरकरार रखे तथा सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामय की अवधारण को विस्तारित करे । हमें ऐसा ही विकास चाहिए। पहाड़ जैसी मुसीबत में राई जैसी राहत मप्र में सूखे से हो रही बर्बादी और लगातार हो रही किसानों की मौतों से हाहाकार मचा हुआ है । लगातार बढ़ता तापमान भविष्य की भयावहता को लेकर डरा रहा है । इस पहाड़ जैसी मुसीबत के दौर में सरकार ने पीड़ित किसानों के लिये जो राहत घोषित की है वह राई जैसी है । इसमें किसानों का हजारों करोड़ रूपयों का नुकसान हुआ है और सरकार ने हाल फिलहाल 1 हजार करोड़ रूपये की राहत बांटने का ऐलान किया है । सूखे से 23 जिलों की 114 तहसीलों के 19 हजार 900 गांव प्रभावित हुये हैं । इन गांवों की फसलें पूरी तरह बर्बाद हो चुकी हैं । कलेक्टरों ने इन गांवों में राहत बांटने के लिए सरकार से 1650 करोड़ रूपयों की राशि मांगी है । अपर मुख्य सचिव वित्त ए.के. श्रीवास्तव ने कलेक्टरों द्वारा मांगी गई इस राशि को अत्यधिक बताया है । उन्होनें कलेक्टरों द्वारा प्रेषित क्षति के आंकड़ों को यह कहकर एक झटके में नकार दिया कि बोवनी के रकब से क्षति कैसे ज्यादा हो गई ? कृषि विभाग के प्रमुख सचिव राजेश राजौरा को मुख्यमंत्री के सामने कहना पड़ा कि कलेक्टरों ने गलत रिपोर्ट भेज दी । क्षति का आंकलन ठीक से नहीं किया । यह तथ्य सामने आने पर मुख्यमंत्री भी भड़के । उन्हें सागर, सीहोर, विदिशा, रायसेन, दमोह, हरदा और बैतूल के कलेक्टरों को हिदायत देना पड़ी कि क्षति का आंकलन खेतों में जाकर करें और 20 अक्टूबर तक रिपोर्ट भेजें । पुनरीक्षित रिपोर्ट मिलने के बाद ही वे प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री और गृहमंत्री से भेंटकर केन्द्र सरकार से क्षतिपूर्ति की मांग करेंगें । हालांकि उन्होनें अपनी तरफ से कुछ राहतें घोषित की हैं । मसलन सूखा प्रभावित किसानों से ऋण वसूली स्थगित कर दी गई है । उनके अल्पकालीन ऋणों को मध्यकालीन ऋणों में बदलने और इस अवधि की ब्याज राशि सरकार द्वारा वहन करने की घोषणा भी की गई है। साथ ही मुख्यमंत्री ने यह आश्वासन जरूर दिया है कि किसानों की हरसंभव सहायता की जायेगी, जरूरत पड़ी तो दूसरे काम रोक दियेे जायेंगे । परन्तु मुख्यमंत्री ने मृत किसानों के परिजनों के राहत मुआवजा देने के बारे में कुछ भी खुलासा नहीं किया । पूछने पर इतना जरूर कहा कि उन्हें भी राहत दी जाएगी । किसानों की मौतों के आंकड़ों पर भी वे चुप्पी साधे रहे । किसानों के लिए मुख्यमंत्री जरूर चिंतित रहते है लेकिन उनकी सरकार नहीं । एक महिने से ज्यादा समय से भी सूखे का हल्ला हो रहा है पर खेती और किसानों को राहत देने के लिए बनी टास्क फोर्स समिति को बैठक करने तक की फुर्सत नहीं है । अधिकारी कृषि बीमा योजना का लाभ भी किसानों को नहीं दिला पाये । 2014-15 में खरीफ और रबी फसलों को पहुंचे नुकसान का बीमा किसानों को अभी तक नहीं मिल पाया है । रबी की 300 करोड़ और खरीफ की 515 करोड़ की क्षतिपूर्ति होना बाकी है । मुख्यमंत्री की पहल पर सरकार ने ऐलान किया है कि पिछले साल की रबी फसलों की क्षतिपूर्ति के 300 करोड़ रूपये बांटने का काम 20 अक्टूबर के बाद प्रारंभ किया जाएगा । जबकि खरीफ की नुकसानी की भरपाई के 515 करोड़ का वितरण जनवरी 2016 के बाद शुरू होगा । जिस बीमा पालिसी से संकट के समय राहत नहीं मिल सके, वह किस काम की ? फसल बीमा ऐसा होना चाहिए कि नुकसान के सर्वे के तुरंत बाद किसानों को बिना किसी परेशानी के क्षतिपूर्ति मिल जाए। वर्तमान पालिसी में बहुत लफड़े है । उसमें कुल क्षति के आधार पर भरपाई करने का कोई प्रावधान नहीं है । मुख्यमंत्री नई फसल बीमा योजना तैयार करने के लिये प्रयासरत है, लेकिन उनके प्रयास सफल होंगे, इसमें संदेह है । मुख्यमंत्री ने खेती को मुनाफे का व्यवसाय बनाने के लिये भी काफी प्रयास किये लेकिन उसमें उन्हें आंशिक सफलता ही मिल पाई । खेती पहले के मुकाबले और भी ज्यादा घाटे का धंधा बन गई । बढ़ती मंहगाई से कृषि को राहत पहुंचाने का कोई प्रावधान नहीं है । इसी तरह किसान को अपने उत्पादन की कीमत तय करने का अधिकार नहीं है । अभी समर्थन मूल्य सरकार तय करती है, वह इतना कम होता है कि उसमें लागत भी नहीं निकलती । भाजपा जब विपक्ष में थी तब उसने किसानों से जोरशोर से वादा किया था कि यदि केन्द्र और राज्य में उसकी सरकार बनी तो वह फसलों की कीमत तय करते समय लागत का 50 प्रतिशत तो वैसे ही दे देगी । याने जो भी समर्थन मूल्य तय होगा वह लागत के आधे से काफी अधिक होगा । वर्तमान में तो समर्थन मूल्य कुल लागत के आधे से बहुत नीचे है । यदि इस विडम्बना को दूर कर दिया जाय एवं किसानों को बिजली, पानी, खाद-बीज और उर्वरकों की बढ़ती कीमतों से राहत दे दी जाये तो फिर उसे किसी बैसाखी के सहारे की जरूरत नहीं होगी । बैसाखी के सहारे से आजाद करने में ही किसान का कल्याण है । यदि खेती को बचाना है तो उसे अपने पैरों पर खड़ा करना ही होगा । सभी समस्याओं का समाधान ’’क्षमा’’ दुनिया की सभी समस्याओं का समाधान ’’क्षमा’’ है । यदि मनुष्य क्षमा मांगना और क्षमा करना सीख ले तो सारा संसार सुखी हो जाये, जितेन्द्रीय हो जाये तथा स्वयं पर विजय पाने वाला महावीर हो जाये । सारी समस्याओं का समाधान करते हुये धरा पर स्वर्ग लाने की ताकत सिर्फ ’’क्षमा’’ में है । क्षमा अहंकार को नष्ट करती है । सारे विकारों की जननी अहंकार है । जब अहंकार ही नहीं रहेगा तो समस्यायें भी नहीं रहेंगी । क्षमा की यह दार्षनिक व्याख्या मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने सबसे क्षमा मांगते हुए और सबको क्षमा करते हुये की । जिसका समर्थन क्षमावाणी कार्यक्रम में मौजूद दूसरे, धर्मगुरूओं ने भी किया । अन्ततः मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अब ’’जैनश्री’’ हो गये हैं । उनकों जैनश्री होने की यह उपाधि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने पिछले दिनों मुख्यमंत्री आवास में संपन्न क्षमावाणी कार्यक्रम में दी । जिसका करतल ध्वनि से स्वागत किया गया । बकौल नंदू भैया जैन समाज में जन्म लेने वाला ही जैन नहीं होता जो व्यक्ति अपने क्रोध को वश में कर ले, बिना मांगे अपने पराये सभी को क्षमा कर दे, जो इंद्रियों को जीत ले, ऐसा जितेन्द्रीय व्यक्ति ही जैन होता है । शिवराज सिंह ने भले ही जैन धर्म में जन्म नहीं लिया परन्तु उपर्युक्त गुणों के कारण वे भी वास्तव में जैन हैं । आज से मैं उन्हें शिवराज सिंह चौहान ’’जैन’’ कहूंगा । मेरे लिये तो वे जैन संत है । जय जिनेन्द्र !

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