राजनीतिक डायरी: क्या मध्यप्रदेश में सबको मिल पायेंगे मकान ?

hकेन्द्र सरकार ने इस योजना के तहत मकान बनाने के लिए पहले चरण में जिन 509 शहरों का चुनाव किया है उनमें मप्र के 74 शहर भी शामिल है । इन शहरों में आवासों के लिए अभी तक न तो जमीनों को चिन्हित किया गया है और न ही केन्द्र के निर्देशानुसार मास्टर प्लाॅन बने हैं । हितग्राहियों का चयन भी बड़ी समस्या बनी हुई है । फर्जी बीपीएल कार्ड भी योजना के क्रियान्वयन में बड़ी बाधा बने हुए है । लोगों को पूरी जानकारी भी नहीं है । विज्ञापनों में जो जानकारी दी गई है वह आधी अधूरी है । गरीबों को अभी तक यह पता नहीं है कि मकानों के लिए आवेदन कहां और कैसे करें ? आवेदन पत्र का प्रारूप भी सार्वजनिक नहीं हुआ है । राजनीतिक DINESH-JOSHI1डायरी दिनेश जोशी क्या म.प्र. में 2022 तक सबको मिल पायेंगे आवास ? यह सवाल इन दिनों राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में पूछा जा रहा है । लेकिन इसका जवाब नहीं मिल रहा है । यह सवाल इसलिए खड़ा हो रहा है क्योंकि अभी तक इस योजना में कोई खास प्रगति होती नहीं दिख रही है । न तो मास्टर प्लान बने है और न ही निर्माण एजेन्सी तय हुई है । मकानों की डिजाइन, क्षेत्रफल और गाइड लाईन्स भी सार्वजनिक नहीं की गई है । हाल ही में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश के सभी गरीबों को केन्द्र से मिलने वाली सब्सिडी के अलावा दो दो लाख रूपये अनुदान देने की घोषणा कर सबका ध्यान इस योजना की तरफ खींच लिया है । मप्र. में सात साल में योजना के तहत 5 लाख आवास बनाने का लक्ष्य है । केन्द्र सरकार ने इस योजना के तहत मकान बनाने के लिए पहले चरण में जिन 509 शहरों का चुनाव किया है उनमें मप्र के 74 शहर भी शामिल है । इन शहरों में आवासों के लिए अभी तक न तो जमीनों को चिन्हित किया गया है और न ही केन्द्र के निर्देशानुसार मास्टर प्लाॅन बने हैं । हितग्राहियों का चयन भी बड़ी समस्या बनी हुई है । फर्जी बीपीएल कार्ड भी योजना के क्रियान्वयन में बड़ी बाधा बने हुए है । लोगों को पूरी जानकारी भी नहीं है । विज्ञापनों में जो जानकारी दी गई है वह आधी अधूरी है । गरीबों को अभी तक यह पता नहीं है कि मकानों के लिए आवेदन कहां और कैसे करें ? आवेदन पत्र का प्रारूप भी सार्वजनिक नहीं हुआ है । दो तीन साल से मप्र में मुख्यमंत्री आवास योजना भी चल रही है । इसके कारण भी भ्रम पैदा हो रहा है । इस योजना में जो हितग्राही है क्या उन्हें भी प्रधानमंत्री आवास योजना में सम्मिलित किया जायेगा ? यह स्पष्ट नहीं है । सरकारी वेबसाइटों पर भी आधी अधूरी जानकारी उपलब्ध है, वह भी पुरानी है, अपडेट नहीं है । मुख्यमंत्री ने दो दिन पहले जो दो दो लाख रूपये अनुदान देने की घोषणा की है, उसका उल्लेख भी वेबसाईटों में नहीं है । हालांकि केबिनेट ने उसे मंजूरी दे दी है । मुख्यमंत्री ने दो दो लाख अतिरिक्त अनुदान देने की घोषणा तो कर दी लेकिन यह पैसा कहां से आयेगा, इसका खुलासा नहीं किया । मार्च 2015 में राज्य का जो बजट पारित हुआ, उसके बाद मानसून सत्र में जो अनुपूरक बजट पारित हुआ, उसमें मकानों के लिए अनुदान का कोई प्रावधान नहीं है । वित्त मंत्री जयंत मलैया और अपर मुख्य सचिव ए.पी.श्रीवास्तव वित्तीय अड़चन की वजह से प्रधानमंत्री आवास योजना के प्रस्ताव को टालना चाहते थे । लेकिन केबिनेट उनके इस प्रस्ताव से सहमत नहीं थी । उसका विचार था कि योजना को टाला तो इसका मप्र की साख पर बुरा असर पड़ेगा । हाल-फिलहाल केबिनेट ने योजना और अनुदान प्रस्ताव को मंजूरी दे दी और वित्तीय संसाधन जुटाने के मसले को अगली बैठक के लिए टाल दिया । मसलन जून से अक्टूबर तक के पांच माह का समय सोच विचार में ही गुजर गया। अब बचे हैं साढ़े छह साल । टारगेट बड़ा है और समय कम । सरकार का निर्माण कार्य वैसे ही बहुत धीमा है । उसकी जितनी भी निर्माण एजेन्सियां हैं उनका काम को अधूरा छोड़ने का, लटकाए रखने का और कभी समय पर पूरा नहीं करने का रिकार्ड रहा है । एक किलोमीटर सड़क बनाने में ही एक साल से ऊपर का समय लग जाता है । तो फिर 5 लाख मकान बनाना बहुत बड़ी बात है । कोर्ट के बार-बार निर्देशों के बावजूद अभी तक प्रदेश के सभी सरकारी स्कूलों में शौचालय नहीं बन पाये हैं, तो आवास कैसे बनेंगे ? पांच लाख आवासों का लक्ष्य निर्धारित समयावधि में तभी पूरा हो सकता है जब सरकार मकान बनाने का काम हितग्राहियों पर छोड़ दे और उन्हें वित्तीय संसाधन, निर्माण सामग्री और जमीन उपलब्ध कराये । अभी तो प्रदेश के 476 शहरों में से सिर्फ 74 को ही योजना में चिन्हित किया गया है । 54 हजार से ज्यादा गांव है, जिन्हें छोड़ दिया गया है । ग्रामीण अंचल के बारे में अभी कोई कार्रवाई नहीं हुई । बिना गांवों को योजना में शरीक किये सबको आवास की परिकल्पना पूर्ण नहीं हो सकती । मार्च के केन्द्रीय बजट में वित्त मंत्री अरूण जेटली ने सबको आवास योजना के तहत 2022 तक देश में 6 करोड़ आवास बनाने का लक्ष्य घोषित किया था लेकिन बाद में इस योजना को बदलकर प्रधानमंत्री आवास योजना कर दिया और मकान बनाने का लक्ष्य 6 करोड़ से घटाकर 2 करोड़ कर दिया गया । जो 4 करोड़ मकान घटाये गये हैं वे ग्रामीण क्षेत्रों में बनना प्रस्तावित थे । अभी तक इस योजना के लिए मध्यप्रदेश सहित 18 राज्यों ने केन्द्र सरकार के साथ मेमोरेन्डम आफॅ एग्रीमेंट साइन किया है । मध्यप्रदेश ही पहला राज्य है जिसने मकान खरीदने के लिए दो दो लाख रूपये अनुदान देने की घोषणा की है । केन्द्र सरकार 1 लाख से ढाई लाख तक के अनुदान के साथ हाऊसिंग लोन पर मकान क्रेता को 15 साल तक 6.5 प्रतिशत का ब्याज अनुदान भी उपलब्ध करायेगी । मध्यप्रदेश के 74 शहर हाल-फिलहाल मप्र के 74 शहरों को प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए चुना गया है । शहरों के नाम इस प्रकार है-आगर, अलीराजपुर, अनूपपुर, अशोक नगर , आष्टा, बालाघाट, बड़वानी, बैरसिया, बैतूल, भिंड, भोपाल, बीना-इटावा, बुदनी, बुरहानपुर, चांदला, छतरपुर, छिंदवाड़ा, डबरा, दमोह, दतिया, देवास, धार, डिंडौरी, गंजबासौदा, गुना, ग्वालियर, हरदा, होशंगाबाद, इंदौर, इटारसी, जबलपुर, झाबुआ, खजुराहो, खंडवा, खरगौन, खुरई, मैहर, मनावर, मंडला, मंदसौर, मुरैना, मुड़वारा(कटनी), नागदा, नरसिंहपुर, नसरूल्लागंज, नीमच, पन्ना, पथरिया, पीथमपुर, रायसेन, राजगढ़, रामपुर-बघेलान, रतलाम, रेहटी, रीवा, सागर, सारणी, सतना, सीहोर, सेंधवा, सिवनी, शहडोल, शाहगंज, शाजापुर, शिवपुरी, सीधी, सिहोरा, सिंगरौली, सोनकच्छ, टीकमगढ़, उज्जैन, उमरिया, और विदिशा । इन शहरों में रतलाम अकेला ऐसा षहर है जिसने केन्द्र सरकार के निर्देशानुसार प्रधानमंत्री आवास के लिये मास्टर प्लाॅन तैयार कर उसे प्रकाशित कर दिया है । रतलाम का 2015 का मास्टर प्लाॅन और नक्षा बेवसाइट पर उपलब्ध है । इंदौर का 2021 तक का मास्टर प्लाॅन भी बनकर तैयार हुआ है । इंदौर के मास्टर प्लाॅन को नोयडा-दिल्ली, चंडीगढ़ और बेंगलूर की तरह आदर्श प्लाॅन माना गया है । भोपाल के मास्टर प्लाॅन का अता-पता नहीं है । अभी इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर, रीवा, उज्जैन और सागर जैसे बड़े शहर स्मार्ट सिटी में ही उलझे हुये हैं । उनका ध्यान प्रधानमंत्री आवास योजना की तरफ बिल्कुल भी नहीं है । ये क्या हो रहा है भाजपा में ? पिछले कुछ समय से भाजपा में कुछ ठीक नहीं चल रहा है । पहले सदस्यता अभियान को लेकर लफड़ा हुआ । सवा करोड़ सदस्यों की पुष्टि के लिए तारीख पर तारीख बढ़ती रही । सदस्यता की पुष्टि का काम अभी तक नहीं हो पाया है । इसी बीच संगठन चुनावों की घोषणा कर दी गई । चुनाव की प्रक्रिया भी प्रारंभ हो गई है । बूथवार इकाईयों के चुनाव संपन्न होने की बात भी कही गई । फिर स्थानीय समितियों के चुनाव की बात आ गई । मंडल चुनावों का कार्यक्रम भी घोषित कर दिया गया है । चुनावी हलचल भी शुरू हो गई है । लेकिन 17 अक्टूबर को अचानक बिहार के चुनावों का कारण बताते हुए मंडल स्तर के चुनाव टाल दिए गए हैं । पर यह कारण कार्यकर्ताओं के गले नहीं उतर रहा है । उनकी आपत्ति है कि बिहार चुनाव का कारण तो उस समय भी मौजूद था जब संगठन चुनावों की घोषणा की गई थी । यदि बिहार चुनाव, संगठन चुनाव टालने का कारण है तो वह अन्य प्रदेशों पर भी लागू होना चाहिए सिर्फ मप्र पर ही क्यों ? प्रदेश निर्वाचन अधिकारी की दलील है कि चूंकि बिहार के तीसरे, चौथे और पांचवें चरण के चुनाव के लिए भाजपा आलाकमान ने मध्यप्रदेश के कई सांसदों और विधायकों को भेजने के लिए कहा है । ये सांसद और विधायक संगठन चुनावों के लिए जिला निर्वाचन अधिकारी घोषित किये जा चुके हैं । इनके बिना चुनाव कैसे हो पायेंगे ? उल्लेखनीय है कि स्थानीय समितियों के चुनाव के बाद प्रदेश निर्वाचन अधिकारी ने साढ़े सात सौ से ज्यादा मंडलों के चुनाव 24 और 26 अक्टूबर को कराने का ऐलान किया था, जो अब स्थगित कर दिया गया है । कांग्रेस सड़क पर नवगठित प्रदेश कार्यकारिणी की दो दिन पहले हुई बैठक के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरूण यादव ने 18 अक्टूबर से जन विश्वास यात्रा प्रारंभ की है । उनकी इस यात्रा के कारण कांग्रेस सड़क पर आ गई है । यादव की यह यात्रा तो प्रारंभ हो गई है पर वे इसे पूरा कर पायेंगे, इसमें संदेह है । क्योंकि इसके पहले पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने भी टुकड़ों-टुकड़ों में इसी तरह की यात्रा प्रारंभ की थी, परन्तु पार्टी की अन्दरूनी कलह के कारण उन्हें यात्रा बीच में छोड़ना पड़ी । उस समय कांग्रेसी दिग्गजों को लग रहा था कि इस यात्रा से अजय सिंह की छबि जननायक की हो जाएगी । इस भय से दिग्गज उनकी यात्रा में बाधा खड़ी करते रहे । आखिरकार उन्हें यात्रा अधूरी छोड़ना पड़ी । निश्चित ही यात्रा से अरूण यादव की छबि चमकेगी, भले ही वे शिवराज सरकार के माथे से पसीने की एक बूंद भी न टपका पायें । छबि में निखार के भय से यादव की यात्रा में भी कई बाधायें खडीं हो सकती हैं । उनकी यात्रा की सबसे कमजोर कड़ी है, यात्रा का टुकड़ों-टुकड़ों में होना। वैसे भी वे कार्यकारिणी के गठन के बाद से कांग्रेस में उपजी नाराजी को अभी तक ठंडा नहीं कर पाये हैं। पहले चरण की यात्रा 18 से 20 अक्टूबर तक चलेगी । इसमें वे कुल 45 किलोमीटर पैदल चलेंगे । दूसरे चरण की पदयात्रा 25 से 30 अक्टूबर के बीच होगी, जिसमे वे देवास, होशंगाबाद, और ओरछा की गलियां नापेंगे । 16 से 20 नवम्बर तक तीसरा और 1 से 7 दिसंबर तक चौथे चरण की पदयात्रा होगी । इसके बाद का कार्यक्रम बाद में घोषित करने की बात कही गई है । अन्ततः लालबत्ती के लिए भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के इंतजार की घड़ियां खत्म होने का नाम नहीं ले रही है । पहले मुख्यमंत्री फिर विनय सहस्त्रबुध्दे और बाद में प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार सिंह चैहान ने श्राध्द पक्ष के बाद नवरात्र में लाल बत्ती मिलने की बात कहकर कार्यकर्ताओं की उम्मीदें जगा दी थी । लेकिन दो दिन पहले प्रदेशाध्यक्ष ने भाजपाईयों की उम्मीदों पर यह कहकर तुषारापात कर दिया कि उनकी वह घोषणा स्वयं के अनुमान पर आधारित थी । हताश, निराश, कार्यकर्ता टूटे दिल से ’’विकास दशक’’ मनाने की तैयारियों में जुटे हुये है ।

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