राजनीतिक डायरी : शोर शराबे और हंगामें की भेंट नहीं चढ़ा म.प्र. विधानसभा का शीतकालीन सत्र

शीतकालीन सत्र का आगाज इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया से जुडे़ अप्रिय प्रहसन से हुआ था । उसे देखकर आशंका पैदा हो गई थी कि शीतकालीन  सत्र का हश्र भी पिछले सत्रों जैसा होगा । परन्तु विधानसभा अध्यक्ष ने व्यवस्था परिवर्तन के मुददे पर तुरंत पुनर्विचार कर सब कुछ पहले जैसा कर लिया । अन्यथा यह अकेला मामला समूचे सत्र को धाराशायी  करने के लिए काफी था । इस सत्र की पांच बैठकों की कार्यवाही अभी शेष है । किसानों को मुआवजा राहत पर चर्चा और तीन-चार विधेयक पारित होने का काम ही बाकी है । ऐसे में निर्धारित अवधि से पहले सत्र के समापन की चर्चा चल पड़ी है ।

DINESH-JOSHI1राजनीतिक डायरी
दिनेश जोशी          
              

मध्यप्रदेश की चतुर्दश विधानसभा का यह पहला ऐसा सत्र है जो शोर शराबे और हंगामें की भेंट नहीं चढ़ा । एक भी दिन की कार्यवाही न तो बाधित हुई और न ठप्प हुई । बहिगर्मन, गर्भगृह में धरना- प्रदर्शन और नारेबाजी के नजारे भी देखने को मिले । लेकिन इसमें हठधर्मी और अड़ियलपना नहीं था । विधानसभा के परिदृष्य में आये इस सकारात्मक बदलाव का श्रेय विधानसभा अध्यक्ष डाॅ. सीताशरण शर्मा की पहल और प्रयासों के साथ प्रतिपक्ष और सत्तापक्ष को भी जाता है । क्योंकि जनहित से जुड़े ढेरों ज्वलंत सवालों के होते हुये भी उन्होनें अपने आपको मर्यादित और संयमित रखा, जो कि बहुत ही दुष्कर कार्य है । नेता प्रतिपक्ष की अनुपस्थिति में प्रतिपक्ष बिखरा नहीं । उपनेता प्रतिपक्ष बाला बच्चन ने सभी को साधते हुए सरकार पर सधे हुए हमले किए, जिनके सार्थक परिणाम निकले ।

इस बदलाव का सुफल यह रहा कि 7 से 11 दिसंबर के बीच की सभी बैठकों में जमकर कामकाज हुआ । प्रश्नकाल का संचालन भी बहुत प्रभावी ढंग से हुआ । सत्तापक्ष और प्रतिपक्ष के तीखे सवालों के आगे कई बार मंत्रीगण असहाय और निरूत्तर नजर आये । उन्हें प्रश्नकर्ता  विधायकों की मंशा  के अनुरूप कार्यवाही करने के लिए विवश होना पड़ा । एक स्थगन, एक दर्जन से ज्यादा ध्यानाकर्षणों और तृतीय अनुपूरक अनुमान पर लम्बी और सार्थक चर्चा हुई । बिजली, खाद-बीज, पानी, किसानों को मुआवजा राहत, कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार और अफसरशाही की नाफरमानी के मुददे पूरे समय छाये रहे । बड़वानी में मोतियाबिंद ऑपरेशन  के दौरान आंखों में घटिया दवाईयां डालने से 46 मरीजों की आंखों की रौशनी छिन जाने जैसे अत्यंत गंभीर मुददे पर सदन में लम्बी और सार्थक चर्चा हुई । चर्चा के दौरान प्रतिपक्षी सदस्य भी अनर्गल और व्यक्तिगत आक्षेप लगाने से बचे । इस चर्चा की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि प्रतिपक्ष द्वारा उठाई गई अधिकांश मांगों को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने स्वीकार करते हुए सदन के फ्लोर पर उनसे संबंधित घोषणाएं कर दी । प्रतिपक्ष ने नेत्र ज्योति से हाथ धोने वाले मरीजों को 5-5 हजार रूपये आजीवन पेंशन देने तथा संपूर्ण घटनाक्रम की न्यायिक अथवा सदन की समिति से निष्पक्ष जांच कराने की मांग की थी । मुख्यमंत्री ने पांच-पांच हजार रूपये महिने आजीवन पेंशन देने के साथ संपूर्ण घटना की तीन सदस्यीय टीम से उच्चस्तरीय जांच कराने की घोषणा कर दी । जांच के बिन्दुओं में घटिया दवा का मुददा भी शरीक कर लिया । विधानसभा में ऐसा बहुत कम होता है कि जब प्रतिपक्ष मांग उठाये और मुख्यमंत्री उसे तुरंत स्वीकार कर ले । यह चर्चा मुख्यमंत्री ने खुद होकर कराई । कांग्रेस के रामनिवास रावत ने भी चर्चा की शुरुआत संयत, सधे हुये और शालीन लहजे में की । इसलिए चर्चा के दौरान कभी भी आक्रामकता और कर्कशता देखने को नहीं मिली, चर्चा भटकी भी नहीं ।

तृतीय अनुपूरक अनुमान पर चर्चा के लिए दो घंटे का समय निर्धारित था । लेकिन प्रतिपक्ष के आग्रह पर विधानसभा अध्यक्ष ने साढ़े चार घंटे तक चर्चा कराई । प्रतिपक्ष के तकरीबन सभी सदस्यों को चर्चा का मौका दिया । चर्चा के दौरान वित्तीय संकट से जुड़े कई गंभीर मुददे उठाये गये । सर्वाधिक आलोचना एक साल में बाजार से लिये गये 30 हजार करोड़ रूपये के कर्जे को लेकर हुई । चर्चा के दौरान पूरे समय वित्त मंत्री जयंत मलैया सदन में बैठे रहे । परन्तु चालीस सदस्यों द्वारा साढ़े चार घंटे तक की गई लम्बी चर्चा का जवाब उन्होनें मात्र चार मिनट में देकर प्रतिपक्ष की मेहनत पर पानी फेर दिया । इससे ऐसा आभास हुआ कि वित्त मंत्री को लंबी चर्चा रास नहीं आई इसलिए उन्होनें जवाब देने की सिर्फ औपचारिकता निभाई।

शीतकालीन सत्र का आगाज इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया से जुडे़ अप्रिय प्रहसन से हुआ था । उसे देखकर आशंका पैदा हो गई थी कि शीतकालीन  सत्र का हश्र भी पिछले सत्रों जैसा होगा । परन्तु विधानसभा अध्यक्ष ने व्यवस्था परिवर्तन के मुददे पर तुरंत पुनर्विचार कर सब कुछ पहले जैसा कर लिया । अन्यथा यह अकेला मामला समूचे सत्र को धाराशायी  करने के लिए काफी था । इस सत्र की पांच बैठकों की कार्यवाही अभी शेष है । किसानों को मुआवजा राहत पर चर्चा और तीन-चार विधेयक पारित होने का काम ही बाकी है । ऐसे में निर्धारित अवधि से पहले सत्र के समापन की चर्चा चल पड़ी है ।

गहराता वित्तीय संकट

सरकार भले ही दावा करे कि प्रदेश की वित्तीय सेहत ठीक है पर जो हालात दिखाई दे रहे हैं वे सरकार के दावों के विपरीत हैं । कोई सरकार विकास कार्यों के बजट में यूं ही 15 प्रतिशत की कटौती नहीं करती। उसे असाधारण स्थिति में मजबूर होकर ऐसे कठोर फैसले करना पड़ते हैं । बजट में 15 प्रतिशत की कटौती से एकाएक विकास कार्य ठप्प हो गये हैं । मनरेगा की मजदूरी का भुगतान करने तक के लाले पड़ गये हैं । सरकार को बार बार अनुपूरक अनुमान लाना पड़ रहा है । पिछले महिने में ही आनन फानन में उसे 1 दिन का विशेष सत्र बुलाकर 8 हजार करोड़ रूपये से ज्यादा का अनुपूरक अनुमान पारित कराना पड़ा । सरकार की आमदनी में भी लगातार गिरावट आ रही है  केन्द्र से समुचित वित्तीय सहायता भी नहीं मिल पा रही है । कई योजनाओं के तहत मिलने वाली वित्तीय सहायता को केन्द्र सरकार ने रोक दिया है या फिर उसमें कटौती कर दी है । इस वजह से सरकार को अधिसूचना और अध्यादेश  जारी कर कराधान बढ़ाना पड़ रहा है । पेट्रोल, डीजल के साथ साथ रसोई गैस भी दो रूपये तक मंहगी कर दी है । सरकार वेट, स्टाम्प, पंजीयन और वृत्तिकर बढ़ाने की कोशिश में है । रजिस्ट्री चार्ज को पांच प्रतिशत से बढ़ाकर साढ़े सात प्रतिशत करने का प्रस्ताव है ।

केन्द्र से किसानों के लिए सहायता नहीं मिलने के कारण राज्य सरकार को अपने संसाधनों से किसानों के राहत और मुआवजे के लिए आठ हजार करोड़ रूपयों का इंतजाम करना पड़ा । इस वजह से राज्य सरकार की वित्तीय हालत गड़बड़ा गई ।

संगठन चुनावों में उलझी भाजपा

इन दिनों भाजपा संगठन चुनावों में उलझी हुई है । प्रदेश में मंडल स्तर के चुनाव चल रहे हैं । सभी मंडलों में आम सहमति से चुनाव कराने के प्रयास हो रहे हैं । आम सहमति बनाने के चक्कर में दो दिन में होने वाले चुनाव आठ दिनों में भी नहीं हो पाये हैं । प्रदेश  के सभी 56 संगठनात्मक जिलों में 761 मंडलों के चुनाव होना है । अभी तक 40 जिलों के 642 मंडलों के चुनाव हो चुके हैं । 16 जिलों में 119 मंडलों के चुनाव अभी बाकी है । इनमें विधायकों और संगठन के बीच मंडलाध्यक्षों को लेकर सहमति नहीं बन पा रही है । मंडल अध्यक्षों और जिला प्रतिनिधियों के चुनाव से निपटे तो जिलाध्यक्षों के चुनाव की प्रक्रिया प्रारंभ हो । संगठन चुनावों के निर्वाचन अधिकारी अजयप्रताप सिंह को लगता है कि एक दो दिन में सभी मंडलों के चुनाव हो जायेंगे । उसके बाद जिलाध्यक्षों के चुनाव कराये जायेंगे । ये चुनाव सभी जिलों में एक साथ कराने की योजना है । उनके अनुसार 26-27 दिसंबर तक जिलाध्यक्षों के चुनाव हो जायेंगे । उसके बाद प्रदेशाध्यक्ष चुनाव की प्रक्रिया प्रारंभ होगी । प्रदेशाध्यक्ष चुनाव का कार्यक्रम केन्द्रीय इकाई द्वारा जारी किया जायेगा । बहुत संभावना तो नंदू भैया के दोबारा अध्यक्ष बनने की है पर कैलाश विजयवर्गीय, कृष्णमुरारी मोघे, भूपेन्द्र सिंह और माया सिंह के नाम भी चर्चा में है ।

आदिवासी वोट बैंक पर कांग्रेस की नजर

रतलाम-झाबुआ संसदीय सीट पर उपचुनाव में मिली जीत से उत्साहित कांग्रेस अब आदिवासियों को आकर्षित  करने में अपनी पूरी ताकत झोंकने वाली है । उसे लगता है कि आदिवासियों का भाजपा से मोहभंग हो चुका है । यदि कांग्रेस थोड़ी मेहनत कर ले तो उनका परंपरागत आदिवासी वोट बैंक लौट सकता है । कांग्रेस ने प्रदेश की सभी 45 आदिवासी बहुल विधानसभा सीटों पर अभी से काम करने की रणनीति तय कर ली है । इसके तहत प्रदेश  के सभी 86 आदिवासी विकास खण्डों में वह अपनी सक्रियता बढ़ा देगी । पिछले तीन चुनावों से अजा.जजा. और पिछड़े वर्ग के लोग कांग्रेस का साथ नहीं दे रहे हैं । वर्तमान में प्रदेश की 45 आदिवासी सीटों में से 30 पर भाजपा और 14 पर कांग्रेस का कब्जा है । जबकि थांदली सीट पर निर्दलीय जीता था जो इस समय भाजपा के साथ है ।

प्रथम ग्रासे मक्षिका पातम

मंदसौर और सीहोर नगरपालिका चुनाव में कांग्रेस की स्थिति प्रथम ग्रासे मक्षिका पातम् जैसी हो गई है । एनवक्त पर अध्यक्ष और पार्षद प्रत्याशियों  के नाम बदलने से कार्यकर्ताओं ने बगावत का बिगुल बजा दिया है । स्थिति यह है कि कांग्रेस को भाजपा से मुकाबला करने के पहले अपनों से ही लड़ना पड़ रहा है । मंदसौर और सीहोर में कांग्रेस ने एनवक्त पर अध्यक्ष का उम्मीदवार बदल दिया है । पहले उसने मंदसौर से राजेन्द्र रघुवंशी को उम्मीदवार बनाया था । अब बदलकर पूर्व मंत्री नरेन्द्र नाहटा के भतीजे सोमिल नाहटा को प्रत्याशी बना दिया है । सीहोर में पहले उसने पूर्व विधायक शंकरलाल  साबू की बहू को अध्यक्ष उम्मीदवार बनाने के संकेत दिये थे । लेकिन एनवक्त पर प्रदेश सचिव राहुल यादव की पत्नी रीना यादव को उम्मीदवार बना दिया । इसके साथ ही सीहोर में तीन पार्षदों के टिकट भी बदल दिये । इन बदलावों से सीहोर में घमासान मचा हुआ है ।

अन्ततः

विधानसभा में इस बार उल्टी गंगा बही । सत्ता पक्ष के विधायकों ने अपनी ही पार्टी के मंत्रियों को कटघरे में खड़ा कर दिया । अमूमन प्रतिपक्ष के सदस्यों के सवालों पर ऐसी स्थिति बनती है । लेकिन पिछले सप्ताह की बैठकों में सत्ता पक्ष के सदस्यों ने ही मंत्रियों की फजीहत कर दी । प्रतिपक्ष के सदस्य सिर्फ मेजे थपथपाते रहे । 

 


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