राजनीतिक डायरी: उपलब्धियों के आंकड़ों से मेल नहीं खा रही जमीनी हकीकत

DINESH-JOSHI1योजनाकारों, हुक्मरानों, कानून के निर्माताओं और उनको लागू कराने वालों के लिये यह यक्ष प्रश्न है ? लाख टके के इस सवाल का जवाब उन्हें आत्मावलोकन में ही मिलेगा । योजनाएं तो एक से बढ़कर एक बनी है । जिनकी सर्वज्ञ सराहना भी हो रही है । कई राज्य उनका अनुसरण भी कर रहे हैं । पर सवाल क्रियान्वयन का है । उनका क्रियान्वयन ठीक नहीं हो रहा है । क्रियान्वयन की मानीटरिंग भी ठीक से नहीं हो रही है । जिन पर यह जिम्मेदारी है, उनकी भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं । समाचार पत्रों के पन्ने भ्रष्टाचार की कलंक कथाओं से भरे पड़े रहते हैं । पर सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता । इसलिए भ्रष्टाचार दिन दूनी रात चैगुनी गति से फल-फूल रहा है । बिना पैसे लिये दिये जनता का कोई काम नहीं होता । अब तो शीर्षस्थ स्थानों पर कुंडली मार कर बैठे आला अफसर भी अपने मातहतों से खुलेआम रिश्वत की मांग कर रहे हैं । उनके वीडियो आम हो रहे है, उसके बाद भी उनका बाल भी बांका नहीं होता ।

राजनीतिक डायरी
दिनेश जोशी

सरकारी विज्ञापनों के जरिये उपलब्धियों के जो चमचमाते आंकड़े सार्वजनिक किये गये है, वो जमीनी हकीकत से मेल नहीं खा रहे हैं । पिछले दिनों मुख्यमंत्री शिवराज सिंह द्वारा प्रदेश के कुछ हिस्सों में आम जनता से की गई समूह चर्चा, आला अफसरों द्वारा किये गये दौरों के बाद दी गई रिपोर्ट, विधानसभा के शीतकालीन सत्र में प्रश्नकाल, ध्यानाकर्षण,शून्यकाल की सूचनाओं और प्रस्तुत याचिकाओं तथा विधायकों से मुख्यमंत्री द्वारा की जा रही वन टू वन चर्चा से विकास और सुषासन की बदरंग तस्वीर उभर रही है । यह तस्वीर सरकार के दावों को सिरे से नकार रही है ।

जब जनता खुश नहीं है, जनप्रतिनिधि खुश नहीं है, मंत्री और अफसर खुश नहीं है तो उपलब्धि के आंकड़ों पर संदेह होना स्वाभाविक है । यह सवाल भी खड़ा होना लाजिमी है कि जब सभी क्षेत्रों में तेज विकास हो रहा है तो उसकी रोशनी से प्रदेश जगमगा क्यों नहीं रहा है ? आखिर विकास की  रोशनी जा कहां रही है ? कौन उससे प्रकाशमान हो रहा है ? जनता के चेहरों पर विकास की चमक क्यों नहीं दिखाई दे रही है ? उसके माथे पर चिन्ता की सलवटें दिन ब दिन गहराती क्यों जा रही है ? अफसरशाही द्वारा परोसे गये आंकड़े जमीनी हकीकत से मेल नहीं खा रहे हैं,  तो अफसरशाही ये आंकड़े लाई कहां से ? पिछले दस सालों में सरकार द्वारा 10 मुख्य और 30 से ज्यादा अनुपूरक बजट पेश कर 12 लाख करोड़ रूपयों से अधिक की राशि खजाने से निकाली जा चुकी है । केन्द्र सरकार से टुकड़ों टुकड़ों में मिली हजारों करोड़ की वित्तीय सहायता इसके अतिरिक्त है । इतनी राशि में तो प्रदेश में दूध-दही की नदियां बहती, गांव में संपन्नता छलकती । किसानों को फांसी के फंदे को गले नहीं लगाना पड़ता । प्रदेश का प्रत्येक नागरिक मालामाल हो जाता । गरीबी,भुखमरी और कुपोषण के दर्शन दुर्लभ हो जाते । पर ऐसा तो कुछ हुआ नहीं, जो हुआ और जो हो रहा है वह सब उलटा हो रहा है, निराशाजनक हो रहा है ।

योजनाकारों, हुक्मरानों, कानून के निर्माताओं और उनको लागू कराने वालों के लिये यह यक्ष प्रश्न है ? लाख टके के इस सवाल का जवाब उन्हें आत्मावलोकन में ही मिलेगा । योजनाएं तो एक से बढ़कर एक बनी है । जिनकी सर्वज्ञ सराहना भी हो रही है । कई राज्य उनका अनुसरण भी कर रहे हैं । पर सवाल क्रियान्वयन का है । उनका क्रियान्वयन ठीक नहीं हो रहा है । क्रियान्वयन की मानीटरिंग भी ठीक से नहीं हो रही है । जिन पर यह जिम्मेदारी है, उनकी भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं । समाचार पत्रों के पन्ने भ्रष्टाचार की कलंक कथाओं से भरे पड़े रहते हैं । पर सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता । इसलिए भ्रष्टाचार दिन दूनी रात चैगुनी गति से फल-फूल रहा है । बिना पैसे लिये दिये जनता का कोई काम नहीं होता । अब तो शीर्षस्थ स्थानों पर कुंडली मार कर बैठे आला अफसर भी अपने मातहतों से खुलेआम रिश्वत की मांग कर रहे हैं । उनके वीडियो आम हो रहे है, उसके बाद भी उनका बाल भी बांका नहीं होता । उन पर पता नहीं किसका वरदहस्त है जो कानून भी उनके आगे पानी भरने लगता है । लोकायुक्त, ईओडब्ल्यु, आयकर और कस्टम के जहां भी छापे पड़ते हैं, करोड़ों रूपयों की अनुपातहीन संपत्ति मिलती है । पर इक्का दुक्का मामलों को छोड़ दें तो अधिकांश मामलों में लीपापोती हो जाती है । लोग तो यहां तक कहने लगे हैं कि जमकर भ्रष्टाचार करो और गाहे-बगाहे पकड़ा जाओ तो भ्रष्टाचार से कमाई अकूत दौलत का एक छोटा सा टुकड़ा फेंककर बाइज्जत बरी हो जाओ ।

प्रदेश में यह स्थिति इसलिए बनी है कि हुक्मरान कमजोर है । अफसरों से पूछताछ करने का उनका साहस नहीं होता । स्थिति में यहां तक गिरावट आ गई है कि हुक्मरान अपने मातहतों के घर जाकर बधाई और शुभकामनायें  देने में भी संकोच नहीं करते । जब मंत्रियों और अफसरों के बीच गलबहियों वाली स्थिति निर्मित होगी तो फिर अफसरशाही में स्वयं के सरकार होने का मुगालता तो पनपेगा ही ।

पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा कहा करते थे कि घुड़सवार अच्छा हो तो बिगड़ैल से बिगड़ैल घोड़े को काबू में कर लेता है और फिर वह वैसा ही चलता है जैसा घुड़सवार उसे चलाना चाहता है । पूर्व मुख्यमंत्री स्वं. अर्जुन सिंह की तिरछी नजर से नौकरशाही खौफ खाती थी । चश्मा उताकर एक बार जिस अफसर को वे तिरछी नजर से देख लेते थे, अगले दिन उसका काम लग जाता था । पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय द्वारका प्रसाद मिश्र और स्व. वीरेन्द्र कुमार सखलेचा के कड़क प्रशासन के लोग आज भी उदाहरण देते नहीं थकते । पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बारे में तो यह चर्चा आम है कि वे ठहाके लगाते हुये जिस अफसर की पीठ पर हाथ रख देते थे उसका भट्टा ही बैठ जाता था । जब तक अफसरशाही में खौफ नहीं होगा, शासक कितना ही अच्छा हो, संवेदनशील हो, जनहितैषी हो, ईमानदार और कत्र्तव्यपरायण हो वह  अच्छा शासन या सुशासन कभी नहीं दे पायेगा । सुशासन में ही जनता की तकलीफें और दुखदर्द दूर करने की ताकत है ।

सुशासन कसमें खाने, संकल्प लेने अथवा एक दिन का दिवस मनाने से नहीं आयेगा । उसके लिए कठोर फैसले लेकर उन्हें लागू करना पड़ेगा । अफसरों से सौहार्द्र संबंधों को खूंटी पर टांगना होगा । काम को पूजना पड़ेगा । चापलूस और ठकुरसुहाती अफसरों के घेरे से बाहर निकलना होगा । जो भी शासक स्वार्थी, पदभ्रष्ट, लालची, खुदगर्ज और खुशामतखोर अफसरों के चंगुल में रहेगा, सत्ता में रहते हुये वह हकीकत को कभी नहीं जान पायेगा । क्योंकि काकस उन तक ताजी हवा पहुंचने ही नहीं देगा । काकस जो दिखायेगा वही शासक को देखना पड़ेगा । फिर शासक भी उसे सही समझने लगता है । कोई उसे आईना दिखाने की कोशिश करता है  तो वह उसे अपना षत्रु मान बैठता है । यहीं से उसके पतन का मार्ग प्रशस्त होता है । जब सत्ता जाती है तो काकस भी उसे पहचानने से इनकार कर देता है ।

अन्ततः
राज्य सरकार की उदार विनिवेश नीति का निवेशक बेजा फायदा उठाने की फिराक में है । राज्य में पूॅंजी निवेश के बहाने वे सरकार से ज्यादा से ज्यादा रियायतें लेने की कोशिश कर रहे हैं । स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि जितने का पूंजी निवेश करने वाले है उससे ज्यादा की छूट चाहते हैं । गांवों में एक कहावत है कि गन्ना मीठा हो तो उसे जड़ से नहीं खाते । अगर गन्ने को जड़ से खायेंगे तो फिर दोबारा उसके दर्शन भी दुर्लभ  हो जायेंगें ।


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