राजनीतिक डायरी: मंहगाई को बढ़ावा देने वाला बजट

jayant_mराजनीतिक डायरी दिनेश जोशी                               इस समय देश  में बजटों का मौसम चल रहा है । राज्य सरकारों के बजट आ रहे हैं । सोमवार को केन्द्र सरकार का भी बजट आने वाला है । व्यवस्थाओं को सुव्यस्थित करने, कामों की दुरूहता को कम करके उन्हें आसान बनाने तथा बेहतर वित्तीय प्रबंधन के लिए बजट बनाने की परंपरा शुरू हुई थी । इसका मुख्य मकसद आम जिंदगी को असान बनाना उनके जीवन स्तर को ऊॅंचा उठाना था । शुरूआती  बजट तो अच्छे आये लेकिन पिछले एक दशक से जिस तरह के बजट आ रहे हैं, वे लोगों के घरों का बजट बिगाड़ने वाले, मंहगाई को बढ़ावा देने वाले और आम जिंदगी को कठिन बनाने वाले आ रहे हैं । बजटों में वित्तीय व्यवस्था साल-दर-साल जटिल होती जा रही है और लोगों पर करों का बोझ बढ़ता जा रहा है । कितने ही वित्त मंत्री आये और चले गये पर बजटों से जनता को राहत नहीं दे पाये । पिछले शुक्रDINESH-JOSHI1वार को म.प्र. सरकार का वर्ष 2016-17 का 24 हजार करोड़ से ज्यादा के राजकोषीय घाटे का बजट आया । इसमें पिछले दरवाजे से इतना ज्यादा कराधान किया गया है कि मंहगाई का बढ़ना तय है । टैक्सेशन के ऐसे ऐसे रास्ते निकाले गये है जिनके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था । बजट में राहत राई बराबर और कर बोझ पहाड़ जैसा लादा गया है। दो दिन पहले केन्द्र सरकार ने आॅनलाईन खरीदी बिक्री को टेक्स मुक्त किया था लेकिन म.प्र. ने उस पर 6 प्रतिशत की दर से प्रवेश कर थोप कर रूपये उगाहने का नया रास्ता निकाल लिया है । पंजीयन और मुद्रांक शुल्क  बढ़ाकर आशियाने  मंहगे कर दिये । यही नहीं रोजमर्रा के काम आने वाले प्लास्टिक के कप, ग्लास, प्लेट, थाली, कटोरी, चम्मच, पाॅलीथीन थैली, पाॅलीथीन बैग, ग्लास-मिरर और गैस गीजर भी 10 गुना ज्यादा मंहगे कर दिये । यह मंहगाई ऐसी है कि घर-घर का बजट बिगड़ जायेगा ।  इस कराधान से गरीब से लेकर अमीर तक सब प्रभावित होंगे । बेर चूर्ण जैसी अल्प उपयोगी वस्तुओं पर राहत दी गई है जो कि ऊॅंट के मुंह में जीरे जैसी है । डेढ़ लाख करोड़ के बजट में 74 हजार करोड़ रूपयों के लगभग रकम विकास कार्यों पर खर्च होगी । जबकि तकरीबन 76 हजार करोड़ रूपये अनुत्पादक कार्यों पर व्यय होगा । इस तरह ऊपर से बजट विकासोन्मुखी दिखाई देता है पर मंहगाई के कारण लोगों को इस विकास की अनुभूति नहीं हो पायेगी । बजट में खेती को ज्यादा बढ़ावा दिया गया है । सिंचाई की 18 नई परियोजनाएं प्रस्तावित की गई है । पर शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण महकमों की उपेक्षा की गई है । उन्हें जितना बजट आवंटित होना चाहिए था, नहीं हुआ । बजट में वित्त प्रबंधन और कर चोरी रोकने के उपाय भी किये गये हैं परन्तु वे नाकाफी है । प्रत्यक्ष कर लगाये जाते तो टेक्स की पाई-पाई खजाने में पहुॅंचती । लेकिन अप्रत्यक्ष कराधान के कारण जनता की जेब से तो टेक्स की पाई-पाई निकाल ली जायेगी पर उसका 10 प्रतिशत हिस्सा भी खजाने में मुश्किल  से पहुंचेगा । टेक्स की बड़ी रकम अफसरों और व्यवसाईंयों के बीच बंट जायेगी । जिस मान से मंहगाई बढ़ी है उस मान से बजट में टेक्सों से होने वाली आमदनी नहीं बढ़ी है । प्रदेश पर बढ़ते हुए कर्ज बोझ को बजट में छिपाने के प्रयास किये गये हैं । सातवें वेतन आयोग के कारण पड़ने वाले अतिरिक्त वित्तीय बोझ का बजट में कोई जिक्र नहीं है । कर्ज बोझ कम करने के बजाय बजट में कर्ज सीमा 3 फीसदी से बढ़ाकर 3.5 फीसदी का प्रस्ताव कर कर्ज का बोझ और ज्यादा बढ़ाने के उपाय किये गये हैं । कुल मिलाकर बजट की चैतरफा आलोचना हो रही है । इससे न तो व्यापारी खुश है, न किसान और न ही आम आदमी । विकास के कई मानकों में पिछड़ा म.प्र. विकास दर देश में सर्वाधिक होने के बावजूद विकास के कई मानकों पर म.प्र. सिर्फ पीछे ही नहीं काफी पीछे है । हमारी प्रति व्यक्ति औसत आय राष्ट्रीय औसत से कम है । 2013-14 की गणना के अनुसार म.प्र. में प्रति व्यक्ति औसत आय 51798 रूपये वार्षिक आंकी गई है, जो कि राष्ट्रीय औसत से 22582 रूपये कम है । प्रति व्यक्ति आय का राष्ट्रीय औसत 74380 रूपये सालाना आंका गया है । साक्षरता प्रतिषत में भी भारी अंतर है । म.प्र. की साक्षरता प्रतिशत 70.6 है जबकि राष्ट्रीय प्रतिशत  74.0 है । स्त्री पुरूष अनुपात में भी बहुत पीछे है । राष्ट्रीय स्तर पर 1000 पुरूषों पर जहां 940 महिलाएं है, वही म.प्र. में 931 महिलाएं है । प्रदेश  में मृत्यु दर और शिशु  मृत्यु दर देश  में सर्वाधिक है । राष्ट्रीय स्तर पर प्रति हजार बच्चों पर 40 बच्चों की मृत्यु होती है । जबकि म.प्र. में 54  शिशुओं  की मौत का आंकड़ा है । जन्म दर जो कम होना चाहिए वह अधिक है । जन्म दर का राष्ट्रीय औसत प्रति हजार 21.4 है जबकि म.प्र. में जन्म दर 26.3 है । महिला मृत्यु दर, कुपोषण, रोजगार और स्वास्थ्य में भी स्थिति खराब है । औसत आयु के मामले में भी बहुत पिछडे़ हैं । राष्ट्रीय स्तर पर औसत आयु 67.5 वर्ष है । जबकि म.प्र. में औसत आयु 62 साल ही है । इस तरह देखें तो 11 प्रतिशत से ज्यादा विकास दर होने के बाद भी हम कई क्षेत्रों में फिसड्डी  हैं । नई टीम पर लगी हैं सबकी निगाहें प्रदेश  में सबकी निगाहें म.प्र. भाजपा अध्यक्ष नंदकुमार सिंह की बनने वाली नई टीम पर लगी है । उनके नये निर्वाचन को डेढ़ माह हो गये हैं, पर वे अभी तक अपनी टीम नहीं बना पाये । उम्मीद की जा रही है कि मार्च के पहले पखवाड़े तक श्री चौहान अपनी टीम गठित कर लेंगे । उनके सामने 2018 में होने वाले विधानसभा चुनावों की चुनौती है । इसी को दृष्टि में रखकर वे अपनी टीम बनायेंगे । नई कार्यसमिति में शामिल होने के लिए भाजपा में इन दिनों जोड़तोड़ का खेल चल रहा है । पार्टी के संविधान के मुताबिक कार्यसमिति में महिलाओं को 33 प्रतिशत प्रतिनिधित्व देने की बड़ी चुनौती है । अभी तक संगठन में महिलाओं को 33 प्रतिशत प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है । वर्तमान कार्यसमिति में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व 20 प्रतिशत  है । फिर अजा.जजा. ओबीसी और अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व की पूर्ति भी बड़ी चुनौती बनी हुई है । इससे पहले अध्यक्ष के चुनाव के साथ ही पदाधिकारियों का चयन हो जाता था । इस बार भी यह हो जाता पर विलम्ब राष्ट्रीय कार्यसमिति के कारण हो रहा है । अमित शाह  भी अभी तक नई कार्यसमिति नहीं बना पाये हैं । राष्ट्रीय कार्यसमिति के गठन के बाद ही प्रदेश  की कार्यसमिति बन पायेगी । प्रदेश के जो नेता राष्ट्रीय कार्यसमिति में स्थान पा जायेंगे उन्हें छोड़कर अन्य नेताओं को प्रदेश कार्यसमिति में प्रतिनिधित्व देने की सोच के कारण यह विलंब हो रहा है । म.प्र. ही नहीं अन्य राज्यों में भी भाजपा की प्रदेश कार्यसमितियां नहीं बन पाई हैं । कांग्रेस में अंदरूनी खटपट बढ़ी मैहर के चुनाव में करारी हार के बाद से मध्यप्रदेश  कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर अंदरूनी खटपट बढ़ गई है । कार्यकर्ता खुलेआम नेतृत्व परिवर्तन की मांग करने लगे है । पिछले कुछ दिनों से वरिष्ठ कांग्रेस नेता कमलनाथ का नाम मीडिया में उछाला जा रहा है । समाचार पत्रों में बयानों के माध्यम से कार्यकर्ता उनसे मप्र की कमान संभालने की अनुनय विनय कर रहे हैं । अभी तक पूर्व केन्द्रीय मंत्री और गुना के सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम चल रहा था । बीच बीच में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का नाम भी सुर्खियों में आ जाता था । पर इस समय कमलनाथ का नाम जोर शोर  से उछाला जा रहा है । चूंकि इस समय दिग्विजय सिंह, विधानसभा में हुई नियुक्तियों के फर्जीवाड़े में उलझे हुये हैं, इसलिए उनके समर्थक हाल-फिलहाल खामोश हैं । वे अपने नेता के अदालत से पाक-साफ बरी होने का इंतजार कर रहे हैं । उन्हें उम्मीद है कि वे जल्दी ही बरी हो जायेंगे । क्योंकि उन्होनें पैसे लेकर नियुक्तियां नहीं की हैं । उन्हें अधिकार था, उसका उन्होनें प्रयोग किया । नियुक्तियों का केबिनेट से भी अनुमोदन कराया । जहां तक ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों के खामोश रहने का सवाल है तो वे अपने नेता का मिजाज समझते हैं । उन्हें इस तरह की नारेबाजी और लांबिग पसंद नहीं है । अपने नेता से हरी झंडी मिलने के बाद ही वे नारेबाजी, बयानबाजी कर पायेंगे । प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन का सवाल इसलिए खड़ा हो रहा है क्योंकि वर्तमान अध्यक्ष अरूण यादव न तो कार्यकर्ताओं की और न ही आलाकमान की अपेक्षाओं पर खरे उतर पाये हैं । वे संगठन में भी जान फूंकने में असफल रहे हैं । उल्टे संगठन में गुटबाजी और झगड़े बढ़े हैं । पुराने, अनुभवी नेताओं का अपमान और फजीहत बढ़ी है । उन्होंने संगठन से दूरी बना ली है । हताश, निराश असलम शेर खां ने तो नई पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है । यादव भाजपा सरकार को घेरने में भी बुरी तरह विफल रहे हैं । वे सरकार के खिलाफ किसी भी मुददे पर कोई बड़ा आंदोलन नहीं खड़ा कर पाये । प्रदेष कांग्रेस की गुटबाजी की प्रतिछाया विधानसभा में दिखाई पड़ती है । नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे बीमार है । वे पिछले दो सत्रों से सदन की कार्यवाहियों में हिस्सा नहीं ले पा रहे हैं । विधायक दल का नेतृत्व करने की उनकी भूमिका को उपनेता बाला बच्चन को निभाना पड़ रहा है । कांग्रेस विधायकों की सक्रियता और आक्रामकता नहीें के बराबर है । दिग्विजय की चेतावनी विधानसभा की कथित फर्जी नियुक्तियों के मामले में गिरफ्तारी के बाद जमानत पर छूटे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने दहाड़ते हुये मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को चेतावनी दी है कि उन्हें छेड़कर ठीक नहीं किया । गलत नंबर डायल कर दिया । वे दबने और डरने वाले नहीं है । दिग्गी राजा की इस चेतावनी का राजनीतिक प्रेक्षक अपने अपने नजरिये से निहितार्थ निकाल रहे हैं । कोई कह रहा है कि मुख्यमंत्री शिवराज  को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा । जबकि कुछ इसे गीदड़ भभकी मान रहे हैं । अब यह तो भविष्य में घटित होने वाले घटनाक्रमों से ही पता चलेगा कि दिग्गी राजा की चेतावनी गीदड़ भभकी है या कुछ और । अन्ततः राजनीतिक गलियारों में मध्यप्रदेश  के राज्यपाल नरेश यादव की अस्वस्थता को लेकर हो रही तरह तरह की चर्चाओं का बाजार गर्म है । वे इतने अशक्त हो चुके हैं कि उन्हें अपने संवैधानिक दायित्वों का ठीक से निर्वहन करने में भी परेशानी  हो रही है । राज्य विधानसभा के बजट सत्र के शुभारम्भ  अवसर पर वे अपना अभिभाषण भी ठीक से नहीं पढ़ पाये ।  अभिभाषण  का पहला और अंतिम पैरा पढ़कर रस्म अदायगी भी वे बमुश्किल  कर पाये । लोग कह रहे हैं कि राज्यपाल महोदय को इतनी तकलीफ भी क्यों दी ? इससे तो अच्छा होता कि सीधे राजभवन से ही वे सेटेलाईट के माध्यम से अभिभाषण पढ़ देते । कम से कम वे व्हील चेयर पर चढ़ने उतरने से बच जाते और उनकी फजीहत भी नहीं होती ।

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