राजनीति डायरी: म.प्र. में भी आरक्षण की आग को भड़काने का प्रयास

[caption id="attachment_33004" align="alignleft" width="150"]file photo file photo[/caption] आदिवासियों का हक मारने के लिए इन जातियों को अजजा में जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है । ये जातियां न तो 5 वीं अनुसूची में और न ही 6 वीं अनुसूचि में है । यह केवल और केवल राजनीतिक तुष्टिकरण की नीति के तहत है । यह आदिवासियों के अधिकार छीनने की नीति है । क्योंकि ये सभी जातियां सक्षम जातियां है और आदिवासियों के लायक नहीं है । यह तो बाहुबलियों को आदिवासी बनाने का प्रयास है । यह सिर्फ वोट-बैंक की  राजनीति है । राजनीतिDINESH-JOSHI1क डायरी दिनेश जोशी मीणा (रावत, मैना, देशवाली), मांझी (कहार, ढीमर, भोई, केवट, मल्लाह) कीर, पारदी एवं धानक जाति को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने और रजक, धोबी एवं कुम्हार (प्रजापति) जाति को अनुसूचित जाति में सम्मिलित करने का अशासकीय संकल्प विधानसभा से पारित कराकर राजस्थान, हरियाणा और गुजरात की तरह म.प्र. में भी आरक्षण की आग को भड़काने का प्रयास किया गया है । ताज्जुब तो सरकार द्वारा इन संकल्पों के पक्ष में व्यक्त की गई सहमति पर हो रहा है , शायद सरकार इसके अंजामों से अनभिज्ञ है । इन प्रयासों का आदिवासी और अनुसूचित जाति के सदस्यों द्वारा विरोध किया जा रहा है । झाबुआ के आदिवासी विधायक बेलसिंह भूरिया ने इन संकल्पों का विरोध किया और उन्हें बहस के लिए आगामी दिनों के लिए टालने का आग्रह किया । बेलसिंह भूरिया ने खुली चेतावनी दी कि यदि इन जातियों को अनुसूचित जनजाति में सम्मिलित किया गया तो प्रदेश के आदिवासी सड़कों पर उतरकर इसका पुरजोर विरोध करेंगे और प्रदेश में भी हरियाणा के जाट आंदोलन जैसी स्थिति बन जाएगी । अभी सदन में अनुसूचित जनजाति के सदस्य नहीं है, अन्यथा वे भी इसका खुलकर विरोध करते । श्री भूरिया का कहना था कि आदिवासियों का हक मारने के लिए इन जातियों को अजजा में जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है । ये जातियां न तो 5 वीं अनुसूची में और न ही 6 वीं अनुसूचि में है । यह केवल और केवल राजनीतिक तुष्टिकरण की नीति के तहत है । यह आदिवासियों के अधिकार छीनने की नीति है । क्योंकि ये सभी जातियां सक्षम जातियां है और आदिवासियों के लायक नहीं है । यह तो बाहुबलियों को आदिवासी बनाने का प्रयास है । यह सिर्फ वोट-बैंक की  राजनीति है । इसका पुरजोर विरोध किया जायेगा । पन्नालाल शाक्य ने भी संकल्प के विरोध में आपत्ति दर्ज कराई । वन मंत्री डाॅ. गौरीशंकर शेजवार ने खुलेआम तो नहीं लेकिन यह कहते हुए अप्रत्यक्ष आपत्ति दर्ज कराई कि संकल्प पर हाॅं या ना कहने की बाध्यता दूसरों के लिए क्यों पैदा की जा रही है । बड़े पदों पर बैठे हुये लोगों के बारे में यह कोड करते हुए कि आप एकत्रित हो और हम सबको लेकर केन्द्र सरकार से मिले और उनको ऐसी चीजों पर विचार करने के लिए हम सदन को क्यों बाध्य करते हैं ? हालांकि इन सदस्योुं की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए सदन ने कांग्रेस सदस्य रामनिवास रावत द्वारा पेश किये गये दोनों संकल्पों को ध्वनिमत से पारित जरूर कर दिया पर इससे आरक्षण विवाद को भी जन्म दे दिया । म.प्र. अभी तक आरक्षण की आग से अछूता है । भाजपा ने भी अपने चुनावी घोषणा पत्र में मीणा, देशवाली, कीर, पारदी आदि जातियों को अजजा. में शामिल करने का ऐलान किया था । पर वह भी उसे क्रियान्वित करने में असफल रही । आखिर कोई न कोई मजबूरी तो होगी । अन्यथा वोट बैंक किस राजनीतिक दल को बुरा लगता है । शायद भाजपा भी इसके अंजाम को सोचकर ठिठक गई ।  आखिर केन्द्र सरकार की भी कोई मजबूरी रही होगी जो उसने म.प्र.विधानसभा द्वारा भेजे गये संकल्पों को ठंडे बस्ते में डाल रखा है । सराहनीय कदम परीक्षाओं में अच्छे नंबर नहीं ला पाने के तनाव से ग्रस्त छात्र-छात्राओं द्वारा की जा रही आत्महत्याओं की गंभीर समस्या के कारणों और उनका निराकरण करने के लिए मध्यप्रदेश विधानसभा ने सदन की विशेष समिति बनाने का निर्णय लेकर एक सराहनीय कदम उठाया है । पूरे सदन ने दलगत भावना से ऊपर उठकर इस समस्या पर मंथन किया । सदस्यों ने इस समस्या को सवाल और जवाब से ऊपर समझा । मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की पहल पर विधानसभा अध्यक्ष डाॅ. सीतासरन शर्मा ने सदन की ऐसी समिति बनाने का ऐलान किया जिसमें विधायकों के साथ साथ मनोविशेषज्ञ, शिक्षाविद, पालक और शिक्षकों का भी प्रतिनिधित्व होगा । यह समिति चार माह में अपनी रिपोर्ट देगी । छात्रों की आत्महत्याओं ने सरकार और सदन दोनों को हिलाकर रख दिया । व्यथित एवं चिंतित मुख्यमंत्री ने कहा कि हम अपने बच्चों को ऐेसे नहीं मरने दे सकते । पालकों, स्कूल प्रबंधन और  शिक्षकों से आग्रह है कि वे ऐसा कुछ नहीं करें, जिससे बच्चों में तनाव बढ़े और हताशा में वे आत्मघाती कदम उठायें । विद्यार्थिंयों को तनाव देना दंडनीय अपराध होगा । मुख्यमंत्री ने  विद्यार्थियों के मन से परीक्षा का भय हटाने और उन्हें तनावमुक्त रखने के लिए स्कूलों में नैतिक शिक्षा और खेल के अनिवार्य पीरियड रखे जाने तथा विद्यार्थियों को योग भी सिखाये जाने का ऐलान किया । सदन में इस समस्या को कांग्रेस के रामनिवास रावत और आरिफ अकील ने ध्यानाकर्षण सूचना के माध्यम से उठाया था । सदन ने उस पर खुलेमन से चर्चा कर अपनी संवेदनशीलता का परिचय दिया । जलसंकट: मचा हाहाकार अभी सूरज का ठीक से तपना भी शुरू नहीं हुआ और प्रदेश में जलसंकट को लेकर हाहाकार मच गया । लोग पानी की बूंद बूंद के लिए तरसने लगे । कई जगह तो सिर फुटव्वल की स्थिति बनी हुई है । नदी-नाले सूख चुके हैं । कुंये तालाब भी दम तोड़ चुके हैं । जल स्तर नीचे गिर जाने के कारण नलकूप और हैण्डपंप भी जवाब दे चुके हैं । जहां पानी उपलब्ध है वहां की नलजल योजनाएं ठप्प पड़ी होने से जलसंकट बना हुआ है । सरकार के आंकड़े जलसंकट की भयावहता का चीख चीख कर बयान कर रहे हैं । प्रदेश में 14956 नलजल योजनाएं संचालित हैं, जिनमें से 3523 बंद पड़ी हैं । इसके अलावा 956 योजनाएं जल स्तर नीचे गिरने और ७० योजनाएं  बिजली की समस्या के कारण ठप्प पड़ी हैं । जल संकट की यह स्थिति सरकार द्वारा किये जा रहे दावों के विपरीत है । सरकार दावा कर रही है कि उसके द्वारा किये गये जल प्रबंधन से सूखे के बावजूद जलस्तर नहीं गिरा । सिंचाई का रकबा काफी बढ़ गया, पर जलसंकट की भयावहता सरकार के दावों की कलई खोल रही है । अभी यह स्थिति है तो जब सूरज अपने शबाब पर होगा और आसमान से आग के गोले बरसायेगा तब क्या होगा ? पिछली केबिनेट की बैठक में मंत्रियों ने आसन्न जलसंकट की भयावहता पर चिंता व्यक्त की थी और बंद पड़ी नलजल योजनाओं, खराब पड़े नलकूपों और हैण्डपंपों को तुरंत प्रारंभ करने की मांग की थी । मंत्रियों के आग्रह पर मुख्यमंत्री ने बंद पड़ी नलजल योजनाओं को शुरू करने के लिए वित्त मंत्री को पीएचई विभाग को 100 करोड़ रूपये देने के निर्देश दिये थे । लेकिन वित्त मंत्रालय ने धनराशि देने में असमर्थता जता दी । पानी की समस्या को लेकर केबिनेट में मंत्रियों के बीच झड़प भी हुई थी । बुंदेलखण्ड और मालवा का इलाका जलसंकट से बुरी तरह त्रस्त है । जो जलस्त्रोत जिंदा है, लोगों को उनकी पहरेदारी करना पड़ रही है । अभी तक ग्रामीण क्षेत्र ही पानी की समस्या से जूझ रहे थे पर अब शहरी क्षेत्र भी जलसंकट की चपेट में आने लगे हैं । इंदौर से लगे उद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर में पानी की भारी कमी हो गई है । हाल फिलहाल पीथमपुर को प्रतिदिन 90 लाख लीटर जलापूर्ति हो रही है जबकि उसकी आवश्यकता 180 लाख लीटर प्रतिदिन की है । पानी का यह संकट क्षेत्र में नये उद्योगों के लिए अवरोध बना हुआ है । यदि जापानी और कोरियाई कंपनियों से इस क्षेत्र में निवेष कराना है तो जलापूर्ति दो गुनी करना ही होगी । राजधानी भोपाल की झुग्गी बस्तियां और आसपास के ग्रामीण इलाकों को भी पानी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है । टीकमगढ़, सागर, बीना, विदिशा, सीहोर, धार, झाबुआ, रतलाम, मंदसौर, हरदा, बैतूल, राजगढ़, रायसेन, ब्यावरा, सिलवानी और आष्टा के लोगों को बूंद बूंद पानी के लिए तरसना पड़ रहा है । यदि सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो आने वाले दिनों में जनसंघर्ष की भयावह स्थिति पैदा हो जाएगी । भाजपा विधायकों में आक्रोष विधानसभा में अक्सर सरकार को विरोधी पक्ष के सदस्यों के आक्रोष का सामना करना पड़ता है । लेकिन इस बार के बजट सत्र में सरकार को विपक्ष के साथ साथ सत्ता पक्ष के सदस्यों की नाराजी भी झेलना पड़ रही है । विधायकों का गुस्सा ध्यानाकषर्ण, सवाल-जवाब और बजट चर्चा के जरिये फूट रहा है । विधायकों के तीखे तेवरों के कारण मंत्रीगणों को असहज स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। संसदीय कार्यमंत्री डाॅ. नरोत्तम मिश्रा को कहना पड़ा कि हमारे विधायक ही जब विपक्ष की भूमिका निभा रहे हों तो क्या करें । भाजपा विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री को भी आग्रह करना पड़ा कि विधायकगण सदन में सरकार को कटघरे में खड़ा ना करें । दरअसल विधायक अपने क्षेत्रों में जनहित से जुड़े विकास के काम नहीं होने से परेशान हैं । अफसर उनकी सुनते नहीं । अधिकारियों-कर्मचारियों का रवैया काम में अड़ंगे डालने का हो गया है । ऐसे में जब वे विधानसभा में सवाल पूछते हैं तो उसका उत्तर भी उन्हें संतोषजनक नहीं मिलता तो उनका आक्रोषित होना स्वाभाविक है । विधायक इतने परेशान हैं कि उन्हें विधायकी से इस्तीफा देने की चेतावनी देना पड़ रही है । सदन के भीतर और बाहर धरने पर बैठना पड़ रहा है । अन्ततः जब एक वित्तीय वर्ष में चार चार अनुपूरक अनुमान लाना पड़े, वह भी बीच बजट सत्र में तो साफ पता लगता है कि सरकार की वित्तीय स्थिति कितना डांवाडोल है । आगामी 11 मार्च को विधानसभा में पेश होने वाला चौथा अनुपूरक अनुमान जहां वित्त मंत्री के मजबूत वित्तीय स्थिति और श्रेष्ठ प्रबंधन के दावे को झुठला रहा हैं, वहीं बड़े वित्तीय गोलमाल की तरफ भी इशारा कर रहा है । बजट पेश करने से पहले 1200 करोड़ रूपये का बाजार से कर्ज उठाना और बजट चर्चा के बीच  चौथा अनुपूरक अनुमान पेश करने से स्पष्ट है कि प्रदेश ’ऋणम कृत्वा, घृतम पीवेत्’ की स्थिति की तरफ बढ़ रहा है । विडम्बना देखिए कि सरकार इस वित्तीय संकट का ठीकरा किसानों के सिर फोड़ने की फिराक में है, याने करे कोई और भरे कोई ।

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