राजनीतिक डायरी: राज्यसभा की तीनों सीटें जीतने की उधेड़बुन में भाजपा

parliyamentवर्तमान विधानसभा की दलीय स्थिति के अनुसार एक सीट जीतने के लिए 58 विधायकों का समर्थन आवश्यक है । भाजपा के पास स्पीकर को मिलाकर 166 विधायक है । इसलिए दो सीटें वह आसानी से जीत लेगी । इसके बाद भी उसके पास 50 विधायक बचेंगे । तीसरी सीट पर विजय के लिए उसे आठ विधायकों का समर्थन और चाहिए । इसकी पूर्ति के लिए उसे बसपा और निर्दलीयों का समर्थन हासिल करने के साथ ही कांग्रेस में भी तोड़फोड़ करना होगी । क्योंकि निर्दलीयों और बसपा का समर्थन मिलने के बाद भी उसे 1 विधायक की कमी पड़ेगी जिसकी पूर्ति कांग्रेस से ही हो सकती है । यह सब कवायद भाजपा को प्रथम वरीयता के वोटों में करना पड़ेगी । यदि नौबत द्वितीय वरीयता में गई तो कांग्रेस अपनी सीट बचाने में कामयाब हो जायेगी। राजनीतिDINESH-JOSHI1क डायरी दिनेश जोशी प्रदेश भाजपा, आगामी 29 जून को मध्यप्रदेश में रिक्त हो रही राज्यसभा की तीनों सीटें जीतने की उधेड़बुन में लगी हुई है । ये सीटें सर्वश्री अनिलमाधव दवे, चंदन मित्रा और डाॅ. विजयलक्ष्मी साधो का कार्यकाल पूरा होने पर रिक्त हो रही है । इनमें से अभी दो सीटें भाजपा  और एक सीट कांग्रेस के पास है । वर्तमान विधानसभा की दलीय स्थिति के अनुसार एक सीट जीतने के लिए 58 विधायकों का समर्थन आवश्यक है । भाजपा के पास स्पीकर को मिलाकर 166 विधायक है । इसलिए दो सीटें वह आसानी से जीत लेगी । इसके बाद भी उसके पास 50 विधायक बचेंगे । तीसरी सीट पर विजय के लिए उसे आठ विधायकों का समर्थन और चाहिए । इसकी पूर्ति के लिए उसे बसपा और निर्दलीयों का समर्थन हासिल करने के साथ ही कांग्रेस में भी तोड़फोड़ करना होगी । क्योंकि निर्दलीयों और बसपा का समर्थन मिलने के बाद भी उसे 1 विधायक की कमी पड़ेगी जिसकी पूर्ति कांग्रेस से ही हो सकती है । यह सब कवायद भाजपा को प्रथम वरीयता के वोटों में करना पड़ेगी । यदि नौबत द्वितीय वरीयता में गई तो कांग्रेस अपनी सीट बचाने में कामयाब हो जायेगी । विधानसभा में कांग्रेस के पास 57 विधायकों का समर्थन है । पर जीत के लिए उसे 1 विधायक का समर्थन और चाहिए । इसके लिए उसे बसपा के चार और तीन निर्दलीय विधायकों में से किसी एक के साथ सौदेबाजी करना होगी । साथ ही उसे यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उसके सभी 57 विधायकों के वोट उसे मिल जाये । लंबे समय से बीमार चल रहे नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे का वोट भी उसे हर हाल में डलवाना ही पड़ेगा । चूंकि विधानसभा में कांग्रेस बहुत कमजोर स्थिति में है । इस वजह से उसके लिए जोड़तोड़ आसान नहीं है और अपनी कमजोर कडि़यों को बचाना भी बहुत बड़ी चुनौती है । कांग्रेस की कमजोर स्थिति का भाजपा फायदा उठाने से नहीं चूकेगी । चूंकि वह सत्ता में है इसलिए उसके लिए जोड़तोड़ कर नये समीकरण बनाना भी आसान है । कांग्रेस में व्याप्त अंतरकलह भी भाजपा के मंसूबों को परवान चढ़ाने में बहुत मददगार होगा । फिलहाल राज्यसभा की इन तीन सीटों के लिए भाजपा से सर्वश्री कैलाश विजयवर्गीय, अनिल माधव दवे और रघुनंदन शर्मा की दावेदारी सामने आई है । विजयवर्गीय वर्तमान में म.प्र. विधानसभा के सदस्य हैं । पर केन्द्रीय संगठन में महासचिव की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिलने के कारण उन्हें मंत्री पद भी छोड़ना पड़ा था । सियासी हल्कों में यह चर्चा है कि श्री विजयवर्गीय अब पूरी तरह से केन्द्रीय राजनीति में सक्रिय होना चाहते हैं । उन्हें मध्यप्रदेश की तिल्लियों से तेल निकलने की गुंजाईश नहीं दिखती। राज्यसभा में जाने के बाद उन्हें विधानसभा की सदस्यता छोड़ना पड़ेगी । उनके इस्तीफे से महू सीट पर उपचुनाव होगा, जिसमें वे अपने बेटे आकाश विजयवर्गीय को विधानसभा के उपचुनाव में उतार सकते हैं । वे बेटे को म.प्र. की राजनीति में लांच कर केन्द्र की राजनीति में सक्रिय होना चाहते हैं । भाजपा में विजयवर्गीय का विरोधी खेमा उनका रास्ता रोकने के लिए प्रदेश संगठन प्रभारी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुध्दे का कार्ड चलाने की फिराक में है । उनको यकीन है कि पार्टी अनिल माधव दवे को फिर से राज्यसभा में भेज देगी। यदि सहस्त्रबुध्दे का कार्ड नहीं चला तो वे प्रदेश के पूर्व संगठन महामंत्री कृष्णमुरारी मोघे की दावेदारी का समर्थन करने में जरा भी नहीं सकुचायेंगे । सभी समीकरण ठीक बैठने पर तीसरी सीट के लिए रघुनंदन शर्मा की उम्मीदवारी को पार्टी का समर्थन मिल सकता है । उधर कांग्रेस में एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति है । एक सीट के लिए स्वयं प्रदेशाध्यक्ष अरूण यादव, महिला कांग्रेस अध्यक्ष शोभा ओझा, पूर्व सांसद मीनाक्षी नटराजन, डाॅ. विजयलक्ष्मी साधो और पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुरेश पचौरी दावेदार है । इनमें से कांग्रेस उसे ही उम्मीदवार बनाना पसंद करेगी जो जोड़तोड़ में माहिर हो और जिसके जीतने की उम्मीद ज्यादा हो । सरकार हैरान तो विधायक परेशान मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार और विधायक दोनों हैरान-परेशान है । सरकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा राष्ट्रीय योजनाओं की मानीटरिंग के लिए केन्द्र सरकार के अफसरों को भेजने के फैसले से हैरान है तो विधायक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह द्वारा उनका रिपोर्ट कार्ड तैयार कराने की कवायद से परेशान हैं । केन्द्र सरकार के अफसरों को मानीटरिंग के लिए मध्यप्रदेश भेजने के फैसले का मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव दोनों ने विरोध किया है । इस संबंध में केन्द्र को बाकायदा चिट्ठी लिखी गई है कि यह हिमाकत राज्य की स्वायत्ता का हनन है । इसलिए यह मंजूर नहीं है। यह संघीय ढांचे की अवधारणा के भी खिलाफ है। दरअसल राज्य सरकार में इसलिए भी  खलबली मची है कि पिछले कुछ वर्षों से केन्द्रीय योजनाओं के लिए मिले बजट को राज्य द्वारा इधर उधर खर्च किया गया। यदि केन्द्रीय अफसर आये तो योजनाओं के क्रियान्वयन की कलई खुल जाएगी। उधर प्रधानमंत्री की चिंता केन्द्रीय योजनाओं का सही क्रियान्वयन नहीं होने को लेकर है । पीएमओ इस बात से भी परेशान है कि जब राज्य सरकारें लगातार अपनी रिपोर्टों में केन्द्रीय योजनाओं के क्रियान्वयन की गुलाबी तस्वीर पेश कर रही हैं तो जमीनी हकीकत इतनी स्याह क्यों है ? योजनाओं की उपलब्धता इतनी अच्छी है तो लोगों की सीरत और सूरत क्यों नहीं बदल रही है ? उनके चेहरों पर गुलाबीपन क्यों नहीं दिखता ? विधायकों में इसलिए हड़बड़ाहट है कि मुख्यमंत्री इस रिपोर्ट कार्ड का इस्तेमाल 2018 के चुनावों में टिकट वितरण के समय कर सकते हैं । विधायकों की यह चिन्ता सही भी हो सकती है पर रिपोर्ट कार्ड तैयार करवाने के पीछे मुख्यमंत्री की मंशा जमीनी हकीकत जानने के साथ साथ विधायकों की सक्रियता बढ़ाने की है । विधायक सक्रिय रहेंगे तो अफसरशाही की मनमानी पर अंकुश लगेगा ही, भ्रष्टाचार में भी कमी आयेगी । विधायकों की हमेशां से यह शिकायत रही है कि अफसर उनकी उपेक्षा करते हैं । उनके बताये कामों में अडं़गा डालते हैं । उनका अपमान करते है, उनकी चिट्ठी पत्रियों का जवाब भी नहीं देते । मुख्यमंत्री यह सर्वे खुफिया तौर पर भी करा रहे हैं  और संगठन से भी करा रहे हैं । इसके अलावा अपने सूत्रों से भी सच्चाई जानने का प्रयास कर रहे हैं । कौन विधायक कितना लोकप्रिय और अलोकप्रिय है ? राज्य और केन्द्र की योजनाओं के क्रियान्वयन में वे कितनी दिलचस्पी ले रहे हैं ?  हाल फिलहाल इस सर्वे को सिंहस्थ के कारण रोक दिया गया है । सिंहस्थ के बाद यह कवायद पूरे जोर शोर से होगी । सत्रावसान होली के पहले या बाद में इन दिनों विधानसभा के गलियारों में यह चर्चा सरगर्म है कि बजट सत्र अपनी पूर्ण अवधि 1 अप्रैल तक चलेगा अथवा नहीं ? यह चर्चा सदन में विधायकों और मंत्रियों की अनुपस्थिति के कारण चल पड़ी है । प्रेक्षकों को लगता है कि सत्तापक्ष और विपक्ष की सदन को पूरे समय तक चलाने में दिलचस्पी नहीं बची है । वे जैसे तैसे जल्दी जल्दी बजट का काम निपटाकर छुटकारा पाना चाहते हैं । जब से बजट मांगों पर चर्चा प्रारंभ हुई है बैंचें खाली पड़ी रहती है । विधायक भी प्रश्न पूछकर नदारत रहते हैं । आसंदी से उनका नाम बार बार पुकारा जाता है पर वे नहीं आते । सदन में वे ही विधायक और मंत्री उपस्थित रहते हैं, जिन्हें प्रश्न पूछना हो और जिन्हें  उत्तर देना हो । चाहे जब सदन में कोरम का अभाव हो जाता है । आसंदी को कार्यवाही रोकनी पड़ती है और कोरम की पूर्ति के लिए लम्बी लम्बी घंटी बजाना पड़ती है । मुख्यमंत्री की अनुपस्थिति भी चर्चा का विषय बनी हुई है । इन सब बातों से लगता है कि सत्र का समापन होली अवकाश के पूर्व 18 मार्च को हो सकता है । वैसे भी बजट पारित होने के बाद सरकार के पास विधानसभा से कराने के लिए कोई खास कामकाज नहीं बचेगा । बजट जल्दी पास कराने के लिए एक दिन में दो दो तीन तीन विभागों की बजट मांगे पारित कराई जा रही है । इसके लिए 8 मार्च से भोजन अवकाश भी बंद कर दिया गया है और सदन की बैठकें शाम 5 बजे के बजाय सात बजे तक हो रही है । अन्ततः अभी तक तो म.प्र. में बढ़ते भ्रष्टाचार की शिकायतें विरोधी दल के लोग ही करते थे लेकिन अब इसने सत्ता पक्ष के सिर पर चढ़कर चिल्लाना शुरू कर दिया है । ताजा ताजा खबर आई है कि भ्रष्टाचार से परेशान सत्ता पक्ष के विधायक आर.डी. प्रजापति ने सरकार के भ्रष्ट कारिन्दों के हाथ कलम कर देने की खुलेआम धमकी दी है । उन्होनें सभा मंच से डंके की चोट पर कहा है कि जो भी अधिकारी कर्मचारी बीपीएल सूची में गरीबों के नाम काटेगा और भ्रष्टाचार करेगा तो वे उसके हाथ काट देंगे । यदि हकीकत में  विधायक महोदय ने अपनी धमकी को सच साबित करना शुरू कर दिया तो प्रदेश की नौकरशाही कर विहीन हो जायेगी, और अजीबोगरीब स्थिति बन जायेगी । न फाईल चलाने वाला होगा और न उन्हें इधर से उधर ले जाने वाला । परवरदिगार से गुज़ारिश है कि वह सरकार के मुलाजिमों को भ्रष्टाचार नहीं करने की सद्बुध्दि दे ताकि सरकार चलती रहे ।

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