राजनीतिक डायरी: ख़ुशी मिलेगी जहां, क्या कोई पहुंच पायेगा वहां !

sivarjsingख़ुशी, प्रसन्नता, आनंद, हर्ष, प्रफुल्लता और हेप्पीनेस कोई ऐसी वस्तु या चीज नहीं है जो कहीं से लाकर लोगों में बांट दी जाये। यह अन्तरआत्मा से जुड़ा मामला है। आत्मसंतोष का मामला है। ख़ुशी को सीमा में बांधना अथवा पैमाने में नापना, समुद्र की लहरें, आसमान के तारे और सिर के बाल गिनना जैसा असंभव है। यह उतना ही दुष्कर है जितना रेत में महल बनाना और छलनी में पानी को रोकना ।  ख़ुशी के कोई मापदण्ड नहीं होते । ख़ुशी छोटी और बड़ी भी नहीं होती। ख़ुशी के कारक भी एक जैसे नहीं हो सकते ।                           राजनीतिDINESH-JOSHI1क डायरी दिनेश जोशी    बड़ी ख़ुशी की बात है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश में हेप्पीनेस मंत्रालय बनाने का ऐलान किया है । उनका फलसफा है कि यह मंत्रालय लोगों की जिंदगी को खुशहाल बनाने का काम करेगा। ख्याल अच्छा है, पर दिल बहलाने तक सीमित नहीं रह जाये। अभी तो हालात ये हैं कि यहां सिर्फ मोगम्बो ही खुश होता है। ख़ुशी, प्रसन्नता, आनंद, हर्ष, प्रफुल्लता और हेप्पीनेस कोई ऐसी वस्तु या चीज नहीं है जो कहीं से लाकर लोगों में बांट दी जाये। यह अन्तरआत्मा से जुड़ा मामला है। आत्मसंतोष का मामला है। ख़ुशी को सीमा में बांधना अथवा पैमाने में नापना, समुद्र की लहरें, आसमान के तारे और सिर के बाल गिनना जैसा असंभव है। यह उतना ही दुष्कर है जितना रेत में महल बनाना और छलनी में पानी को रोकना । ख़ुशी के कोई मापदण्ड नहीं होते । ख़ुशी छोटी और बड़ी भी नहीं होती। ख़ुशी के कारक भी एक जैसे नहीं हो सकते । बच्चा माॅ का चेहरा देखकर खुश हो जाता है, माॅ बच्चे की मुस्कान पर खिल उठती है तो पिता माॅ-बेटे को प्रसन्न देखकर आनंदित-आल्हादित होता है । दादा-दादी परिवार के सुख में सुखानुभूति महसूस करते हैं । छोटे बच्चे टाफियों से, विद्यार्थी परीक्षा पास करने से, नौजवान नौकरी और मनपसंद जीवनसाथी मिलने पर, किसान अच्छी फसल देखकर, व्यापारी कारोबार में मुनाफा होने पर, पुलिस चोर को पकड़ने पर, अफसर बाबू रिश्वत मिलने पर, व्यभिचारी स्त्री का दैहिक शोषण करने पर, साधु-संत ईश्वर से एकाकार होने पर, दुष्टजन परपीड़ा देकर, सज्जन परोपकार कर, सैनिक युध्द जीतकर तथा राजा प्रजा को सुखी देखकर प्रसन्न होता है। इसलिए किसी एक नीति या उपाय से सबको समान रूप से हमेशां हमेंशन के लिए खुश नहीं किया जा सकता है। ख़ुशी के लिए छोटे-छोटे, भिन्न-भिन्न तरह के असंख्य उपाय करने होंगे। ख़ुशी को स्थायी बनाने के लिए इन उपायों में समय के साथ सतत् बदलाव करते रहना होंगे। ख़ुशी क्षणिक होती है। हर पल उसके कारक और पैमाने बदलते रहते हैं। यह संसार दुखों से भरा हुआ है । भांति-भांति के दुख है। जब तक दुःख रहेगा, सुख नहीं आयेगा। बिना सुख के ख़ुशी आ ही नहीं सकती। सुख-दुःख और ख़ुशी का धन दौलत और संपन्नता से कोई वास्ता नहीं है। हम विचारों से दुखी होते हैं। भरपेट स्वादिष्ट भोजन और तरह तरह के व्यंजन भी हमें आत्मिक सुख नहीं दे पाते। कुछ दिन पहले हमारी क्रिकेट टीम ने पाकिस्तान को हराया तो पूरा देश बहुत खुश था, दो दिन बाद वेस्टइंडिज ने हमें हराया तो हम दुःख के महासागर में समा गये। कभी कोई भारत माता की जय नहीं बोलता है तो हम दुःखी हो जाते हैं, कभी कोई राष्ट्रविरोधी नारे लगाता है तो आग बबूला हो जाते हैं। आतंकवादी हमारे जवानों को गोली से उड़ाते हैं तो हमारा खून खौल उठता है। मंहगाई बढ़ जाती है तो तनाव से भर जाते हैं। हमारी ख़ुशी - नाखुशी सेंसेक्स के उतार चढ़ाव की तरह उठती गिरती रहती है। कभी प्रकृति के जलजले हमारा सब कुछ नष्ट-भ्रष्ट कर हमें दुःखी कर जाते है तो कभी मानव निर्मित दुर्घटनाएं हमें दहला जाती हैं। इन दिनों भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, अन्याय, अनाचार, अत्याचार, जातिवाद, अलगाववाद और साम्प्रदायिकता का जहर हमें खून के आंसू रूला रहा है। ऐसी विषम परिस्थितियों में सबको ख़ुशी करने का विचार वैसे ही ख़ुशी का अहसास देता है जैसे मरूस्थल में पानी और सूरज की गर्मी से तपते तन को मिल जाये तरूवर की शीतल छाया से होता है । जैसा कि मुख्यमंत्री ने खुद कहा है कि उन्होनें अमीरों को बड़े ओहदेदारों को,रसूखवाले सरमायेदारों को, मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और उद्योगपतियों को तनाव  अवसाद और दुख में देखा है । इसके विपरीत धरती का बिछौना और आसमान की चादर ओढ़कर सोने वाले गरीबों को अलमस्त हो ख़ुशी में नाचते देखा है । गरीब-आदिवासी सिर्फ आज में जीता है। वह पशु पक्षियों की तरह कल की चिन्ता नहीं करता। वह अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम, दास मलूका कह गये सबके दाताराम वाले फलसफे पर भरोसा करता है । उसे न तो मंहगाई की चिंता सताती है और न ही आतंकवाद। वह ईमानदारी से कड़ा परिश्रम करता है, जो फल मिल जाये उसी में संतोष करता है । वह निर्मल होता है, उसे छलकपट नहीं आता। इसलिए वह बिंदास जीवन जीता है और दिन में कई कई बार खुश होता है । अपने में मस्त रहता है । ख़ुशी ऐसे ही किरदारों पर आनंद बरसाती है। खुश रहना है तो अपने आपको बदलना होगा। आदमी में यह बदलाव कोई सरकार कानून बनाकर नहीं ला सकती। फिर भी इस असंभव को संभव करने का बीड़ा उठाने का दुस्साहस मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया है । इसकी हमें दाद देना पड़ेगी । अब देखना है कि इस दुष्कर कार्य में उनका हाथ कौन बंटाता है। वे किस पात्र को इसके लिये उपयुक्त समझते हैं। इस काम में उन्हें कितनी सफलता मिलती है, कितनी नहीं, यह तो वक्त ही बतायेगा । लेकिन दार्शनिक मुख्यमंत्री तो वे बन ही गये हैं। माननीयों की वेतनवृध्दि म.प्र. विधानसभा ने बिना किसी चर्चा के पांच मिनट में मुख्यमंत्री, मंत्रियों, स्पीकर, डिप्टी स्पीकर, नेता प्रतिपक्ष और विधायकों के वेतन-भत्तों में 55 प्रतिशत की वृध्दि कर दी । या यूं कहें कि वित्तीय संकट के दौर में माननीयों ने अपनी पगार अपने हाथों से बढ़ा ली । याने जगन्नाथ का भात और अपना हाथ वाली कहावत चरितार्थ कर अपने हाथों अपनी पीठ थपथपा ली। दूसरी तरफ वित्तीय संकट का रोना रोते हुये सरकार ने विकास कार्यों में भारी भरकम कटौती कर रखी है, दिसंबर माह से ही भुगतानों पर पाबंदी लगा रखी है। आम जनता को राहत पहुंचाने में आनाकानी कर रही है। आपदा पीड़ित किसानों को, गरीब मजदूरों को, कर्मचारियों को और आम जनता को राहत पहुंचाने में तरह तरह की बहानेबाजी कर रही है । इसके विपरीत सरकार ने खजाना भरने के लिए बजट में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करारोपण कर जनता पर भारी वित्तीय बोझ डाल रखा है। फिजूलखर्ची और भ्रष्टाचार चरम पर है । सरकार 1 लाख 36 हजार करोड़ रूपयों से भी ज्यादा के कर्ज के बोझ तले दबी हुई है । आर्थिक दबावों का सामना करने के लिये माननीयों को अपनी पगार बढ़ाना पड़ी । जनता इस बात को सहर्ष स्वीकार कर लेगी, यदि माननीय अपनी पूरी क्षमता, लगन और ईमानदारी से अपने आपको जनसेवा में झोंक दें । अभी कोई रास्ता नहीं था, इसलिए माननीयों को अपने हाथों अपनी पगार बढ़ाने की हिमाकत करना पड़ी । भविष्य में फिर ऐसी नौबत नहीं आये, इसलिए मंत्रियों, सांसदों और विधायकों को वेतन भत्तों में वृध्दि करने के लिए कोई दूसरा विकल्प तलाशना होगा। कोई आयोग, कमेटी या न्यायाधिकरण गठित करना होगा। जो उन्हें जनता से रूसवा होने से बचा सके। वेतन बढ़ने पर आत्मग्लानि का भाव उनके मन मस्तिष्क को उद्वेलित नहीं करे । अन्ततः कुदरत का करिश्मा देखिये छत्तीसगढ़ के अम्बिकापुर की एक महिला ने एक साथ पांच कन्याओं को जन्म दिया । शायद ईश्वर को यह चमत्कार महिला-पुरूष के अनुपात में आ रहे भारी अंतर को पाटने के लिए करना पड़ा । बार बार चेतावनी के बाद भी जब कोख में कन्याओं के कत्ल का सिलसिला नहीं थमा तो खुदा को यह रास्ता अपनाना पड़ा । अब भी यदि पुरूष की आंखें नहीं खुली और नारी की कोंख को नारी की कत्लगाह बनाने का घिनौनाकृत्य बदस्तुर जारी रहा तो वह इससे भी बड़ा चमत्कार करने से नहीं चूकेगा ।

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