राजनीतिक डायरी: सिंहस्थ का सरकारीकरण

simhastha-logo-newसिंहस्थ सबके लिये लाभकारी है। जहां आम श्रध्दालु पुण्यलाभ अर्जित करेंगे, वहीं व्यापारी, कारोबारी, अर्थलाभ कमायेंगें । राजनेताओं और राजनीतिक दलों को वोटों की फसलें काटने का सुअवसर प्राप्त होगा तो सरकारी मुलाजिमों को चैत काटने तथा सरकारी धन में सेंधमारी करने का सुनहरा मौका मिलेगा । याने सबकी पौ बारह होगी । जिसकी आस्था होगी वह भी और जिसकी आस्था नहीं होगी, उसे भी गंगा घोड़े नहाने का मौका मिलेगा ।

DINESH-JOSHI1राजनीतिक डायरी दिनेश जोशी     धार्मिक, सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक आयोजनों में अमूमन लोग सरकार की दखलंदाजी पसंद नहीं करते। इस तरह के आयोजनों में सरकार की भूमिका साधन, सुविधाएं और संसाधन उपलब्ध कराने तक सीमित रहना चाहिए। सरकार की ज्यादा दखलंदाजी से इस तरह के पारंपरिक और ऐतिहासिक आयोजनों की मौलिकता नष्ट-भ्रष्ट हो जाती है। मौलिकता खो जाने पर आयोजन में अनेक तरह की विकृतियां पनपने लगती हैं और उनकी सार्थकता सिध्द नहीं होती । आगामी 22 अप्रैल से 22 मई तक ऐतिहासिक नगरी उज्जैन में होने जा रहे सिंहस्थ में चहॅुंओर सरकार की भूमिका स्पष्ट नजर आ रही है। साधु-संतों का यह आयोजन राजनेताओं और सरकारी मुलाजिमों का कुंभ बन गया है। तैयारियों का जायजा लेने के बहाने से मुख्यमंत्री, मंत्रीगण और सरकार के आला अफसर वहां आ-जा रहे हैं। राजनेताओं की भूमिका दिन पर दिन अहम और साधु-संतों की गौण होती जा रही है। इससे ऐसा लगने लगा है कि सिंहस्थ की आयोजक म.प्र. सरकार है।  व्यवस्थाओं को लेकर साधु-संतों की नाराजगी आये दिन सामने आ रही है। उन्हें आवश्यक सुविधाओं के लिए कलेक्टर और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों के सामने गिड़गिड़ाना पड़ रहा है। तंबू तानने अथवा डेरा जमाने के लिए भूखंडों के आवंटन में भारी भेदभाव और मनमानी की जा रही है। इसी तरह की मनमानी पानी और बिजली उपलब्ध कराने में भी हो रही है। सिंहस्थ में होने वाले शाही स्नानों में साधु-संतों की भागीदारी को भी नियंत्रित कर दिया गया है। इसी तरह का नियंत्रण कालों के काल महाकाल के अभिषेक पूजा-अर्चना, भस्मारती और दर्शनों में भी कर दिया गया है। शनै :  शनै : सरकार ने समूचे आयोजन का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया है। चप्पे चप्पे पर पुलिस तैनात की जा रही है। जिससे मुहुर्त समय में नर्मदा-क्षिप्रा के जल में डुबकी लगाना तथा महाकाल के दर्शन दुष्कर  हो जायेंगे। सिंहस्थ में स्नान और दर्शन का ही तो महत्व है। बिना स्नान और दर्शन के यह पर्यटन का केन्द्र बनकर रह जायेगा। सिंहस्थ में तीन दिन का वैचारिक महाकुंभ का अयोजन कर म.प्र. सरकार ने इस धार्मिक समागम को अलग रंगत देने की कोशिश की है। सरकार की कोशिश इस वैचारिक महाकुंभ को सिंहस्थ का मुख्य आकर्षण बनाने की है। इसमें देश - विदेश के विचारकों, चिंतकों, धर्मगुरूओं, राजनेताओं और जननायकों को आमंत्रित किया गया है । निवेषकों, उद्योगपतियों और पूंजीपतियों को तो खासतौर से आमंत्रित किया गया है।इस वैचारिक महाकुंभ का समापन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करने वाले हैं। वे इस वैचारिक कुंभ से विश्व की समस्याओं के समाधान के लिए निकलने वाले संकल्प पत्र को सार्वजनिक करेंगे। सामान्यतः धार्मिक समागमों का न तो उद्घाटन होता है और न ही समापन। उनमें किसी को आमंत्रित भी नहीं किया जाता है। उसका कोई आयोजक भी नहीं होता। कालगणना के अनुसार पूर्व निर्धारित समय में स्वस्फूर्त श्रध्दाभाव से पुण्यलाभ की आकांक्षा से श्रध्दालुओं का इस तरह के समागमों में आने जाने का सतत् सिलसिला चलता रहता है। इस तरह के समागमों के प्रचार-प्रसार के लिए विज्ञापनों की परंपरा भी नहीं रही है। उज्जैन का इस बार का सिंहस्थ हरिद्वार, इलाहाबाद और नासिक के कुंभ से काफी अलहदा है। इन कुंभों में वहां की सरकारों की भागीदारी न के बराबर थी । उन्होनें आवश्यक इंतजामों तक ही अपनी भूमिका सीमित रखी थी । इस वजह से इन स्थानों के कुंभ उज्जैन के सिंहस्थ की अपेक्षा कम खर्चीले रहे। उज्जैन में म.प्र.सरकार पैसा पानी की तरह बहा रही है। केन्द्र सरकार ने पैसे नहीं दिये तो विकास योजनाओं में कटौती कर वित्तीय संसाधन जुटा रही है। अपने तरफ से कोई कोर कसर बाकी नहीं रख रही है। इससे पहले भी उज्जैन में सिंहस्थ हुये हैं पर जितना खर्च इस सिंहस्थ में हो रहा है, उतना पहले किसी सिंहस्थ में नहीं हुआ। म.प्र. की भाजपा सरकार का यह दूसरा सिंहस्थ है। 2004 के सिंहस्थ में भी सरकार ने तीन चार हजार करोड़ के निर्माण कार्य कराये थे, पर वे अस्थायी प्रकृति के थे, इस वजह से सिंहस्थ के समापन के साथ ही उनका नामोनिशान भी मिट गया। कुछ सड़कें और पुल-पुलिया स्थायी प्रकृति के थे लेकिन उनका निर्माण इतना घटिया था कि उनके संधारण और मरम्मतीकरण में ही निर्माण से ज्यादा पैसा खर्च हो गया। इस बार भी स्थायी के साथ अस्थायी प्रकृति के निर्माण कार्य हो रहे हैं। इन निर्माण कार्यों की गुणवत्ता कितनी अच्छी है इसका अंदाजा हाल में पक्की सड़क के धसकने वाली घटना से लग जाता है। 1980 से 2016 तक के सिंहस्थ में राज्य सरकार ने 15-20 हजार करोड़ रूपये खर्च किये हैं। इनमें से अधिकांश राशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। यदि इस राशि का सही ढंग से इस्तेमाल होता तो आज उज्जैन विश्व का सबसे सुंदर शहर होता और वहां की बिजली, पानी, सड़क, साफ-सफाई, शिक्षा, स्वास्थ्य और आवागमन की व्यवस्थाएं विश्वस्तरीय  होती । वैसे सिंहस्थ सबके लिये लाभकारी है। जहां आम श्रध्दालु पुण्यलाभ अर्जित करेंगे, वहीं व्यापारी, कारोबारी, अर्थलाभ कमायेंगें । राजनेताओं और राजनीतिक दलों को वोटों की फसलें काटने का सुअवसर प्राप्त होगा तो  सरकारी मुलाजिमों को चैत काटने तथा सरकारी धन में सेंधमारी करने का सुनहरा मौका मिलेगा । याने सबकी पौ बारह होगी । जिसकी आस्था होगी वह भी और जिसकी आस्था नहीं होगी, उसे भी गंगा घोड़े नहाने का मौका मिलेगा । अन्ततः आंदोलनों से सत्ता शीर्ष पर पहुंचने वाली शख्सियत जब दूसरे लोगों को आंदोलनों से दूर रहने की नसीहत दे तो यह बात लोगों को आसानी से हजम नहीं होती । इस तरह की नसीहत पर तरह तरह के सवाल उठना लाजिमी है । लोगों की स्मृति में वे घटनाक्रम भी ताजा हो उठे जब  शीर्ष पर रहते हुये नसीहत देने वाले खुद भूख हड़ताल पर बैठे थे, जबकि संविधान उन्हें इसकी इजाजत नहीं देता था । हमारे पूर्वजों ने ’’गुड़ खायें गुलगुले से परहेज करें’’ वाले मुहावरे की रचना ऐसे ही लोगों के लिए की होगी ।

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