सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून पर सुनवाई: क्या है विवाद; कौन, क्यों, कब पहुंचा अदालत, जानें सबकुछ

न्यूज डेस्क, अमर उजाला Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Wed, 16 Apr 2025 08:14 PM IST

वक्फ संशोधन कानून को लेकर विवाद क्या है? यह मामला सुप्रीम कोर्ट कब पहुंचा? इस मामले में कौन कोर्ट पहुंचा है? इतने पक्ष एक साथ अदालत पहुंचे क्यों हैं? इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट में मामले में कैसे सुनवाई हुई? आइये जानते हैं...

सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को वक्फ संशोधन कानून, 2025 की कानूनी वैधता को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई हुई। मामले में अलग-अलग पक्षों, मसलन याचिकाकर्ताओं और सरकार की तरफ से अपने तर्क प्रस्तुत किए गए। वहीं, कोर्ट ने भी इस मामले में कई सवाल किए और टिप्पणी के माध्यम से अपना रुख सामने रखा।

 
  1.  

मामले में कब-कब क्या हुआ?

3 अप्रैल 2025
  • वक्फ संशोधन विधेयक, 2025 लोकसभा में 288-232 वोटों के अंतर से पास हुआ
4 अप्रैल 2025
  • राज्यसभा में विधेयक के समर्थन में 128 और विरोध में 95 सांसदों ने वोट किया।
  • इसी दिन AIMIM के ओवैसी और कांग्रेस के मो. जावेद सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। 
5 अप्रैल 2025
  • राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने विधेयक को मंजूरी दी और यह कानून बन गया।
7 अप्रैल 2025
  • कई और याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली। मामले पर जल्द से जल्द सुनवाई की मांग रखी गई।
  • CJI के नेतृत्व वाली बेंच ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद के वकील कपिल सिब्बल को याचिका लिस्ट रने का भरोसा दिया।
8 अप्रैल 2025
  • केंद्र सरकार ने वक्फ संशोधन कानून को नोटिफाई किया, कानून के तौर पर लागू हुआ।
  • केंद्र ने सर्वोच्च न्यायालय में कैवियट दाखिल की और किसी भी फैसले से पहले सुनवाई की मांग की।
10 अप्रैल 2025
  • सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की तारीख 16 अप्रैल तय की। इसके लिए तीन सदस्यीय पीठ का भी एलान हुआ।
14 अप्रैल 2025
  • भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) भी मामले में याचिकाकर्ता बनी। भाजपा शासित राज्य भी एक-एक कर पक्षकार बने।
वक्फ संशोधन कानून को लेकर कौन-कौन अदालत पहुंचा?
  • सुप्रीम कोर्ट में मामले में 72 याचिकाएं दायर हुई हैं। याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद, इमरान प्रतापगढ़ी, एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी), आम आदमी पार्टी नेता अमानतुल्ला खान, अरशद मदनी, जमीयत उलेमा-ए-हिंद, समस्त केरल जमीयतुल-उलेमा, अंजुम कादरी, तैयब खान सलमानी, मोहम्मद शफी, मोहम्मद फजलुररहीम, भाकपा और राजद नेता मनोज कुमार झा, आंध्र प्रदेश की पार्टी-वाईएसआरसीपी, तमिलनाडु के दो दल- द्रमुक और अभिनेता विजय की पार्टी टीवीके शामिल हैं। 
  • इसके अलावा वकील हरि शंकर जैन और मणि मुंजाल नााम के याचिकाकर्ता ने एक अलग याचिका देकर कानून के कई भागों को चुनौती दी है और इन्हें मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला बताया है।
  • कोर्ट में जवाब देने के लिए केंद्र सरकार के अलावा भाजपा शासित सात राज्यों ने याचिका दायर की थी। इनमें हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और असम शामिल हैं। इन राज्यों ने वक्फ संपत्तियों के सुधारवादी प्रबंधन के लिए कानून को जरूरी करार दिया है। इन्होंने वक्फ संपत्तियों के अपूर्ण सर्वे और खराब अकाउंटिंग के साथ वक्फ न्यायाधिकरण में लंबित मामलों का भी हवाला दिया है। 
  • सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल इस मामले की सुनवाई तीन जजों की बेंच कर रही है। इनमें चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी. विश्वनाथन शामिल हैं। 
इतने पक्ष एक साथ अदालत क्यों पहुंचे?
  • याचिकाकर्ताओं की दलील है कि वक्फ संशोधन कानून मुस्लिमों को मिले संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। साथ ही वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता को भी कमजोर करता है। 
  • याचिकाओं में कहा गया है कि नया वक्फ कानून संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 15 का सीधा उल्लंघन है, जो कि कानून के सामने बराबरी का अधिकार देता है।
  • याचिकाकर्ताओं ने वक्फ संपत्तियों से जुड़े मामलों में सरकारी हस्तक्षेप का मुद्दे उठाया है। औपचारिक दस्तावेजों की गैरमौजूदगी में कई अहम ऐतिहासिक संपत्तियों को गंवाने का खतरा जताया है।

वक्फ कानून पर कैसे सुनवाई हुई?

वक्फ कानून पर अलग-अलग पक्षों ने अपनी दलीलें रखीं। जहां याचिकाकर्ताओं ने कई प्रावधानों पर सवाल पूछे तो वहीं सरकार ने इसके जवाब दिए। दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट की तरफ से भी कई टिप्पणियां की गईं। 

क्या बोले याचिकाकर्ता?
  • याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने वक्फ संशोधन अधिनियम का हवाला दिया और कहा कि वह उस प्रावधान को चुनौती दे रहे हैं, जिसमें कहा गया है कि केवल मुसलमान ही वक्फ बना सकते हैं। सिब्बल ने पूछा, 'राज्य कैसे तय कर सकता है कि मैं मुसलमान हूं या नहीं और इसलिए वक्फ बनाने के योग्य हूं या नहीं?' उन्होंने कहा, 'सरकार कैसे कह सकती है कि केवल वे लोग ही वक्फ बना सकते हैं जो पिछले पांच सालों से इस्लाम का पालन कर रहे हैं?' 
  • कपिल सिब्बल ने कहा कि सेंट्रल वक्फ काउंसिल (1995) के तहत बोर्ड में सभी मुस्लिम होते थे। हिन्दू और सिख बोर्ड में भी सभी सदस्य हिन्दू और सिख ही होते हैं। नए वक्फ संशोधित अधिनियम में विशेष सदस्यों के नाम पर गैर मुस्लिमों को जगह दी गई है। यह नया कानून अधिकारों का सीधा उल्लंघन है।
  • वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, जो कुछ याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, ने कहा कि वक्फ अधिनियम का पूरे भारत में प्रभाव होगा और इनसे जुड़ी याचिकाओं को उच्च न्यायालय में नहीं भेजा जाना चाहिए। 
  • वक्फ अधिनियम का विरोध कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि उपयोगकर्ता की तरफ से वक्फ इस्लाम की एक स्थापित प्रथा है और इसे खत्म नहीं किया जा सकता। मुस्लिम पक्ष की तरफ से बात रखते हुए एक अन्य अधिवक्ता राजीव शकधर ने कहा कि मूल रूप से अनुच्छेद 31 को हटा दिया गया था। वे संपत्ति के साथ कब छेड़छाड़ कर सकते हैं? 
  • वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि यह कानून इस्लाम धर्म की अंदरूनी व्यवस्था के खिलाफ है। राजीव धवन ने कहा कि संवैधानिक हमले का आधार यह है कि वक्फ इस्लाम के लिए आवश्यक और अभिन्न अंग है। धर्म, विशेष रूप से दान, इस्लाम का आवश्यक और अभिन्न अंग है।
सरकार ने क्या पक्ष रखा?
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि बहुत से मुसलमान ऐसे भी हैं जो वक्फ कानून से शासित नहीं होना चाहते। उन्होंने यह भी बताया कि नया वक्फ संशोधन कानून संसद की संयुक्त समिति की 38 बैठकों के बाद बना है और इसे 98.2 लाख लोगों की राय जानने के बाद पारित किया गया।
कोर्ट ने केंद्र से क्या सवाल पूछे?
  1. इस सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा- 'क्या आप अब हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुसलमानों को भी शामिल करेंगे? अगर हां, तो खुलकर कहिए।'
  2. कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कोई संपत्ति 100-200 साल पहले वक्फ घोषित हुई है, तो उसे अब अचानक से बदला नहीं जा सकता।आप इतिहास को दोबारा नहीं लिख सकते।
  3. सुप्रीम कोर्ट ने एक और अहम बात कही- वक्फ बोर्ड और सेंट्रल वक्फ काउंसिल के सभी सदस्य मुस्लिम ही होंगे, सिर्फ जो पदेन सदस्य हैं, वो किसी भी धर्म के हो सकते हैं।

Leave Comments

Top