सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून: सरकार-याचिकाकर्ताओं के बीच उभरे तल्खी के दो सबसे बड़े मुद्दे, जानें यह क्यों अहम

न्यूज डेस्क, अमर उजाला Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Thu, 17 Apr 2025 06:23 PM IST

सुप्रीम कोर्ट में बुधवार के बाद गुरुवार को भी वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 पर सुनवाई हुई। हालांकि, करीब आधे घंटे बाद ही कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश जारी कर दिया। इसमें केंद्र सरकार को जवाब के लिए एक हफ्ते का समय दिया गया। साथ ही नए अधिनियम के कुछ प्रावधानों को लागू न करने को कहा गया।

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक बार फिर वक्फ संशोधन कानून, 2025 के मामले में सुनवाई की। केंद्र की तरफ से दी गई दलीलों के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में याचिकाकर्ताओं के सवालों का जवाब देने के लिए सरकार को 7 दिन का समय दे दिया। हालांकि, कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता की तरफ से दिए गए भरोसे के तहत कुछ अहम दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिनसे कानून तो लागू रहेगा, लेकिन अगली सुनवाई तक इसके कुछ प्रावधान पर एक तरह की रोक लगा दी गई है

अब जानें- संशोधित वक्फ कानून पर सरकार, याचिकाकर्ताओं, अदालत का कहना है?

1. गैर-हिंदुओं की नियुक्ति पर

क्या है नए कानून में नियम?
वक्फ बोर्डों के संचालन में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं, जैसे कि अब बोर्ड में गैर-मुस्लिम और कम से कम दो महिला सदस्यों को नामित किया जाना प्रस्तावित है। इन सदस्यों को अतिरिक्त विशेषज्ञता और निगरानी के लिए जोड़े जाने की बात कही गई। इसके तहत अधिकांश सदस्य मुस्लिम समुदाय से होते हैं, जिससे धार्मिक मामलों पर समुदाय का नियंत्रण बना रहता है। गैर-मुस्लिमों के नियुक्ति के प्रावधान पर खासतौर पर विवाद है। 
नियम लाने पर सरकार का तर्क: वक्फ (संशोधन) कानून, 2025 वक्फ प्रशासन के लिए एक धर्मनिरपेक्ष, पारदर्शी और जवाबदेह व्यवस्था तय करता है। जहां वक्फ संपत्तियां धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों की पूर्ति करती हैं, उनके प्रबंधन में कानूनी, वित्तीय और प्रशासनिक जिम्मेदारियां शामिल होती हैं, जिनके लिए सुव्यवस्थित शासन की आवश्यकता होती है। वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद (सीडब्ल्यूसी) की भूमिका धार्मिक नहीं, बल्कि नियामक है, जो कानूनी अनुपालन सुनिश्चित करती है और सार्वजनिक हितों की रक्षा करती है। यह विधेयक हितधारकों को सशक्त बनाकर और शासन में सुधार करके देश में वक्फ प्रशासन के लिए एक प्रगतिशील और निष्पक्ष ढांचा तैयार करता है।
कानून के खिलाफ याचिकाकर्ताओं का तर्क: वक्फ संशोधन कानून के प्रावधान (धारा 9, 14) केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों के नामांकन के बारे में है, जिसे याचिकाकर्ताओं ने संविधान के अनुच्छेद 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन में स्वतंत्रता) का सीधा उल्लंघन बताया। उन्होंने कहा कि सिख गुरुद्वारों से संबंधित केंद्रीय कानून और हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती पर कई राज्य कानून संबंधित बोर्डों में अन्य धर्मों के लोगों को शामिल करने की अनुमति नहीं देते हैं।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि स्वर्ण मंदिर पर गैर-सिखों का नियंत्रण न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए एक लंबे अकाली आंदोलन की जरूरत पड़ी।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया: सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या सरकार गैर-हिंदुओं और मुसलमानों को हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती बोर्डों या संस्थानों का सदस्य बनाएगी? जस्टिस विश्वनाथ ने कहा कि जब हिंदू बंदोबस्ती की बात आती है तब सिर्फ हिंदुओं के ही शासन की बात आती है।

2. वक्फ बाई यूजर यानी उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ पर

क्या है नए कानून में नियम?
संशोधित वक्फ कानून में 'उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ' का खंड हटाया गया है, और यह साफ किया गया है कि वक्फ संपत्ति से संबंधित मामले अब पूर्वव्यापी तरीके से नहीं खोले जाएंगे, जब तक कि वे विवादित न हों या सरकारी संपत्ति न हों।
सीधे शब्दों में समझा जाए तो उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ का मतलब है कि जो संपत्तियां पहले से ही इस्लाम धर्म के काम में आती रही हैं, जैसे- मस्जिदें, दरगाह, कब्रिस्तान, आदि, वे इसलिए वक्फ संपत्ति हैं, क्योंकि उनका लंबे समय से इसी तरह प्रयोग किया जाता रहा है। ऐसी कई सैकड़ों साल पुरानी संपत्तियों के लिखित दस्तावेज उपलब्ध नहीं हो सकते, लेकिन लंबी समयावधि से इस्तेमाल के कारण उन्हें वक्फ माना गया है।
यह अवधारणा कोर्ट के कुछ फैसलों और 2013 में वक्फ कानून में किए गए संशोधन के बाद नियमित हो गई। बताया जाता है कि ऐसा इस्लाम धर्म से जुड़ी कई विरासतों और धरोहरों के संरक्षण के लिए किया गया, ताकि दस्तावेजों की गैरमौजूदगी उनके लिए कोई खतरा न बने। 
प्रावधान को खत्म करने पर सरकार का तर्क: सरकार का कहना है कि प्रावधान को हटाने का उद्देश्य संपत्ति पर अनधिकृत या गलत दावों को रोकना है। हालांकि, उपयोगकर्ता संपत्तियों (जैसे मस्जिद, दरगाह और कब्रिस्तान) द्वारा ऐसे वक्फ को सुरक्षा प्रदान की गई है, जो वक्फ संपत्ति के रूप में बनी रहेंगी, सिवाय इसके कि संपत्ति पूरी तरह या आंशिक रूप से विवाद में है या सरकारी संपत्ति है। यह पंजीकरण प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करता है, यह सुनिश्चित करके कि केवल औपचारिक रूप से वक्फ घोषित संपत्तियों को ही मान्यता दी जाती है, जिससे पारंपरिक वक्फ घोषणाओं का सम्मान करते हुए विवाद कम होते हैं।
उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ ऐसी स्थिति है, जहां किसी संपत्ति को सिर्फ इसलिए वक्फ माना जाता है क्योंकि उसका उपयोग लंबे समय से धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए किया जाता रहा है - भले ही मालिक द्वारा कोई औपचारिक, कानूनी घोषणा न की गई हो।
याचिकाकर्ताओं की दलील: इस मुद्दे पर याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि कल को हमसे पूछा जाएगा कि क्या 300 साल पहले कोई वक्फ बनाया गया और डीड प्रस्तुत करें। कई संपत्तियां सैकड़ों साल पहले बनाई गई हैं और कोई दस्तावेज नहीं होंगे। सिब्बल ने कहा कि जब अंग्रेज आए तो कई वक्फ संपत्तियों को गवर्नर जनरल के रूप में रजिस्टर में दर्ज किया गया और स्वतंत्रता के बाद सरकार ऐसी संपत्तियों पर दावा कर रही है। उन्होंने वक्फ बाई यूजर संपत्तियों के रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य करने वाले प्रावधानों पर आपत्ति जताई।
सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि 'वक्फ-बाय-यूजर' शब्द को हटाना खतरनाक है, क्योंकि वक्फ बोर्ड्स के अंतर्गत आने वाली 8 लाख संपत्तियों में से करीब 4 लाख संपत्तियां वक्फ बाई यूजर हैं, जो अब कलम के एक झटके से अवैध हो गईं।
सीनियर एडवोकेट सीयू सिंह ने कहा कि अगर सरकार 300 साल पुरानी वक्फ संपत्ति पर दावा करती है तो जब तक नामित अधिकारी 20-30 साल तक विवाद का फैसला नहीं कर लेता, तब तक संपत्ति का इस्तेमाल वक्फ के तौर पर नहीं किया जा सकता। 
अदालत ने क्या टिप्पणी की: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप एक वक्फ रजिस्टर्ड कर सकते हैं, जो आपको एक रजिस्टर बनाए रखने में भी मदद करेगा। जस्टिस विश्वनाथ ने कहा कि अगर आपके पास कोई विलेख है, तो कोई भी फर्जी या झूठा दावा नहीं होगा।
चीफ जस्टिस ने कहा, "हमें बताया गया है कि दिल्ली हाईकोर्ट की इमारत वक्फ भूमि में है, ओबेरॉय होटल वक्फ भूमि में है। हम यह नहीं कह रहे हैं कि सभी वक्फ-बाय-यूजर संपत्तियां गलत हैं। लेकिन कुछ वास्तविक चिंता के क्षेत्र भी हैं।"
सर्वोच्च न्यायालय ने वक्फ बाई यूजर पर सरकार से कहा, "जहां सार्वजनिक ट्रस्ट को वक्फ घोषित किया गया, मान लीजिए 100 या 200 साल पहले, आप पलटकर कहते हैं कि यह वक्फ नहीं है। आप 100 साल पहले के अतीत को फिर से नहीं लिख सकते!"

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