भारत ने वैश्विक चुनौतियों का बेहतरीन तरीके से सामना किया है। मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने यह टिप्पणी की। उन्होंने विश्वास जताया कि वित्त वर्ष 2026 में जीडीपी ग्रोथ रेट सात प्रतिशत तक पहुंच सकती है। इंडिया मैरीटाइम वीक में बोलते हुए नागेश्वरन ने कहा कि तीन वैश्विक रेटिंग एजेंसियों ने हाल ही में भारत की रेटिंग बढ़ाई है। अगर देश इसी राह पर चलता रहा तो भारत जल्द ही 'ए' रेटिंग श्रेणी में आ सकता है।
उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने लचीलापन दिखाया है। सरकार और आरबीआई की ओर से उठाए गए कदमों के कारण यह सकारात्मक स्थिति देखने को मिली। अनंत ने कहा कि इस वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था ने वैश्विक अनिश्चितताओं व टैरिफ संबंधी घटनाक्रमों पर जिस प्रकार प्रतिक्रिया दी है, उससे हमें काफी संतुष्ट होना चाहिए
उन्होंने कहा कि आयकर में राहत और हाल ही में जीएसटी सुधार सहित नीतिगत उपायों ने वित्त वर्ष 2026 के लिए वास्तविक रूप से इस वर्ष की आर्थिक वृद्धि की संभावनाओं को बेहतर बनाकर लगभग सात प्रतिशत तक पहुंचा दिया है।फरवरी में, नागेश्वरन ने अनुमान लगाया था कि वित्त वर्ष 2026 के लिए वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 6.3 प्रतिशत तक गिर सकती है। अमेरिका के टैरिफ कदमों के कारण उन्हें अपनी उम्मीद को और घटाकर छह प्रतिशत करना पड़ा था।
बैंक ऋण वृद्धि में सुस्ती की आलोचना का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए हमें अर्थव्यवस्था में कुल संसाधन जुटाने पर गौर करना चाहिए। इसमें गैर-बैंक ऋणदाताओं, वाणिज्यिक पत्र, जमा प्रमाणपत्र, इक्विटी बाजार आदि के माध्यम से जुटाई गई धनराशि भी शामिल है। आरबीआई के आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि पिछले छह वर्षों में अर्थव्यवस्था में कुल संसाधन जुटाने में 28.5 प्रतिशत प्रति वर्ष की वृद्धि हुई है।
यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब निजी पूंजीगत व्यय में सुस्त वृद्धि को लेकर व्यापक चिंता जताई जा रही है। नागेश्वरन ने जोर देकर कहा कि आरबीआई ने ब्याज दरों में कटौती की है और अर्थव्यवस्था में पर्याप्त धन उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए तरलता उपाय किए हैं।
नागेश्वरन ने कहा कि सरकार वित्तीय अनुशासन, स्थिरता, कम मुद्रास्फीति और उद्योगों के लिए कम उधारी लागत को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि भारत ने बिना कर्ज के बोझ को बढ़ाए अपनी प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हासिल की है।
उनके अनुसार, भारतीय समुद्री उद्योग भी वही चुनौतियां झेल रहा है जो व्यापक अर्थव्यवस्था के सामने हैं, कच्चे माल की उपलब्धता, अधोसंरचना अंतराल, प्रतिभा की कमी, प्रौद्योगिकी अंतर और लागत संबंधी दिक्कतें। उन्होंने इन्हें दूर करने के लिए नीतिगत सुधार, उदारीकरण और सरकारी वित्तीय सहयोग को जरूरी बताया।