कांग्रेस की संगठनात्मक सुस्ती, मतदाता पुनरीक्षण में फिर पिछड़ी

 

समय रहते बीएलए भी नियुक्त नहीं कर पाया संगठन
भोपाल। बिहार में हुए स्पेशल इलेक्शन रिव्यू (एसआईआर) की तरह अब मध्यप्रदेश में भी मतदाता सूची पुनरीक्षण की प्रक्रिया जारी है, लेकिन कांग्रेस एक बार फिर ढीली तैयारी के कारण विपक्षी बढ़त गंवाती दिख रही है। यही कारण है कि प्रदेश में एसआईआर का काम शुरू हो गया, मगर कांग्रेस अब तक सभी 230 विधानसभा क्षेत्रों में बीएलए नियुक्त नहीं कर पाई है।
प्रदेश में कांग्रेस के पास मौका था कि वह समय रहते बूथ स्तर पर निगरानी मजबूत करती, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कांग्रेस की कोई ठोस रणनीति नज़र नहीं आती। कई जिलों में कार्यकर्ताओं को यह तक नहीं मालूम कि मतदाता पुनरीक्षण कब से शुरू हुआ या स्थानीय स्तर पर उनकी भूमिका क्या है। हालात यह है कि प्रदेश के सभी 230 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव आयोग का एसआईआर का काम शुरू कर दिया गया, मगर कांग्रेस 230 विधानसभा सीटों में से मात्र 37 विधानसभा सीटों पर ही बीएलए की नियुक्ति कर पाई है। बढ़ी बात तो यह है कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी सहित कई बड़े नेताओं के जिलों में ही बीएलए की नियुक्ति नहीं की गई है। जब संगठन को इसकी जानकारी मिली तो अब फिर से 8 नवंबर तक सभी विधानसभा क्षेत्रों में बीएलए की नियुक्ति के निर्देश दिए हैं।
नेता हैं, जमीनी सिफाई नहीं
प्रदेश के लगभग सभी जिलों में स्थिति एक जैसी है। भोपाल, जबलपुर और ग्वालियर जैसे बड़े जिलों में संगठनात्मक बैठकों की औपचारिकता निभाई जा रही है, लेकिन फील्ड में गतिविधि न्यूनतम है। छोटे जिलों दमोह, छतरपुर, शाजापुर, आगर-मालवा, डिंडौरी, सिंगरौली, शिवपुरी, टीकमगढ़ और खंडवा में पार्टी की उपस्थिति बेहद कमजोर है। कई जगह कांग्रेस कार्यालयों के किराये तक का इंतज़ाम मुश्किल से हो पा रहा है। कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण शिविर बंद हैं और सोशल मीडिया टीमें बिखरी हुई हैं। सबसे बड़ी चिंता यह है कि पार्टी के पास अब स्थायी कार्यकर्ता वर्ग लगभग नदारद है नेता हैं, पर जमीनी सिपाही नहीं।
गुटबाजी की पुरानी बीमारी अब भी है जारी
नई जिलाध्यक्ष इकाइयों को संगठन को पुनर्जीवित करने की जिम्मेदारी दी गई है। कई जगह युवा नेतृत्व को मौका भी मिला है, लेकिन अब तक परिणाम उत्साहजनक नहीं हैं। संसाधनों की कमी, संरचना का अभाव और गुटबाजी की पुरानी बीमारी अभी भी संगठन को पंगु बनाए हुए है। नए अध्यक्ष बूथवार पुनर्गठन की बात करते हैं, पर न तो पर्याप्त कार्यकर्ता मिलते हैं, न सहयोग। पुराने गुट नए चेहरों को आगे नहीं बढ़ने देते। परिणामस्वरूप प्रदेश कांग्रेस का ढांचा कंकाल की तरह रह गया है, हड्डियां हैं, पर उनमें जान नहीं।


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