तो मोबाइल नेटवर्क के लिए नहीं लगेंगे टावर?: जानें कैसे इतिहास रचने वाला है इसरो का 101वां मिशन, ये क्यों खास

स्पेशल डेस्क, अमर उजाला Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Tue, 23 Dec 2025 08:43 PM IST

इसरो का साल का आखिरी मिशन क्या है? कैसे भारत के लिए यह बड़ी उपलब्धि बनेगा? जिस मिशन का भारत ने बीड़ा उठाया है, वह सैटेलाइट क्यों खास है? कैसे इसरो की मदद से आने वाले समय में अमेरिकी कंपनी मोबाइल नेटवर्क का पूरा स्वरूप बदल सकती है और स्टारलिंक जैसी कंपनियों के लिए चुनौती बन सकती है? आइये जानते हैं...

भारत का अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) इस साल के अपने आखिरी मिशन में इतिहास रचने जा रहा है। 24 दिसंबर (बुधवार) को भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी अमेरिका की कंपनी एएसटी स्पेस मोबाइल के एक अहम सैटेलाइट को अंतरिक्ष में लॉन्च करने की तैयारी कर रही है। इसके लिए मंगलवार को 24 घंटे का काउंटडाउन भी शुरू हो गया। एलवीएम3-एम6 मिशन के जरिए अमेरिकी कंपनी के कम्युनिकेशन सैटेलाइट ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया जाना है। अगर यह मिशन सफल होता है तो भारत से लेकर पूरी दुनिया के लिए यह अहम मौका बनेगा।  

 


ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर इसरो का ये मिशन क्या है? कैसे भारत के लिए यह बड़ी उपलब्धि बनेगा? जिस मिशन का भारत ने बीड़ा उठाया है, वह सैटेलाइट क्यों खास है? कैसे इसरो की मदद से आने वाले समय में अमेरिकी कंपनी मोबाइल नेटवर्क का पूरा स्वरूप बदल सकती है और स्टारलिंक जैसी कंपनियों के लिए चुनौती बन सकती है? आइये जानते हैं...
पहले जानें- क्या है इसरो का मिशन, क्या इतिहास बनाने की तैयारी?
इसरो के इस मिशन का नाम एलवीएम3-एम6 ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 (LVM3-M6 / BlueBird Block-2) है। यह पूरी तरह से कॉमर्शियल लॉन्चिंग है। यह मिशन अमेरिकी कंपनी एएसटी स्पेसमोबाइल के ब्लू बर्ड ब्लॉक-2 संचार उपग्रह को पृथ्वी की निचली कक्षा यानी लोअर अर्थ ऑर्बिट में स्थापित करने के लिए है। इसरो इसकी लॉन्चिंग के लिए अपने एलवीएम3 रॉकेट का इस्तेमाल करेगा, जो कि इस लॉन्च व्हीकल की छठवीं उड़ान होगी और वाणिज्यिक मिशन के लिए तीसरी। भारत के इस लॉन्च व्हीकल को पहले ही इसकी क्षमताओं के लिए 'बाहुबली' नाम दिया जा चुका है। 
कैसे भारत के लिए बड़ी उपलब्धि बनेगा यह मिशन?
भारत के लिए यह एक अहम मिशन है, क्योंकि लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (एलवीएम3) रॉकेट की छठी उड़ान सफल होने से कमर्शियल स्पेस सेक्टर में भारत की पकड़ और मजबूत होगी। ब्लू बर्ड ब्लॉक-2 उपग्रह का वजन लगभग 6,500 किलोग्राम है। भारतीय लॉन्च व्हीकल अगर इस मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम देता है तो यह पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित होने वाला सबसे बड़ा वाणिज्यिक संचार उपग्रह होगा।
भारत अपने एलवीएम3 लॉन्च व्हीकल के जरिए चंद्रयान-2, चंद्रयान-3 और वैश्विक स्तर पर सैटेलाइट इंटरनेट मुहैया कराने वाली- वन वेब के सैटेलाइट लॉन्चिंग मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दे चुका है। वन वेब मिशन में इसरो ने एलवीएम से दो बार में कुल 72 सैटेलाइट्स पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित की थीं। 

 मिशन में शामिल सैटेलाइट क्यों खास, दुनिया को क्या हासिल होगा?

1. बिना टावर की रेंज में आए भी मिलता रहेगा सिग्नल
ब्लू बर्ड ब्लॉक-2 उपग्रह एक अगली पीढ़ी (नेक्स्ट जेन) की प्रणाली का हिस्सा है। अगर यह उपग्रह सही कक्षा में स्थापित हो जाता है और कंपनी के परीक्षण सफल होते हैं तो इसके जरिए 4जी और 5जी स्मार्टफोन पर सीधे सेल्युलर ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी मिलेगी। उपभोक्ता को किसी अतिरिक्त एंटीना या कस्टमाइज्ड हार्डवेयर की जरूरत नहीं होगी। फिलहाल सेलफोन को 4जी या 5जी नेटवर्क हासिल करने के लिए मोबाइल टावर की जरूरत होती है, लेकिन इस उपग्रह के सफल होने के बाद टावर का काम खत्म हो सकता है। 
2. दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुंच
चूंकि उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगाने के साथ कुछ सबसे दूरस्थ स्थानों जैसे हिमालय, महासागरों और रेगिस्तानों तक मोबाइल सेवा पहुंचा सकता है, ऐसे में इन क्षेत्रों में 4जी-5जी नेटवर्क सुविधा पहुंचाना आसान हो जाएगा। इससे वैश्विक स्तर पर डिजिटल असमानता को कम भी किया जा सकता है। यह ग्रामीण क्षेत्रों, खुले पानी और उड़ानों के दौरान नेटवर्क कवरेज की खामियों को खत्म कर सकता है। आमतौर पर इन क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति और यहां पहुंच न होने की वजह से पारंपरिक सेल्युलर नेटवर्क यहां फेल हो जाते हैं। इतना ही नहीं आपदा की स्थिति में जब टेलीकॉम इन्फ्रास्ट्रक्चर तूफान, बाढ़, भूकंप, भूस्खलन या दूसरी प्राकृतिक आपदाओं में तबाह हो जाते हैं, तब भी सैटेलाइट नेटवर्क बेहतर रहता है। इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेश यूनियन डाटा के मुताबिक, 2025 तक दुनियाभर में 200 करोड़ लोग अब भी इंटरनेट या नेटवर्क कवरेज के बिना रहने को मजबूर हैं।  
3. बेहतर स्पीड और क्षमता 
इस उपग्रह को 5,600 से ज्यादा व्यक्तिगत सिग्नल सेल बनाने के लिए डिजाइन किया गया है। यह 120 मेगाबाइट्स प्रति सेकंड तक की अधिकतम गति (पीक स्पीड) मुहैया कराने में सक्षम है। यह स्पीड वॉइस कॉलिंग, मैसेजिंग, तेज डाटा ट्रांसफर और बिना रुकावट की वीडियो स्ट्रीमिंग के लिए काफी है।

लॉन्च सफल हुआ तो आगे क्या संभावनाएं?

अगर इसरो इस मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम देता है तो इसके आगे सैटेलाइट कंपनी ऑपरेशनल टेस्टिंग को अंजाम देगी। इसके बाद वैश्विक सेवाओं की शुरुआत होगी और अलग-अलग देशों से लाइसेंस हासिल करने की प्रक्रिया शुरू होगी। 
1. परीक्षण का चरण
लॉन्च के सफल होने और उपग्रह के स्थापित होने के बाद उपग्रह को पृथ्वी की निचली कक्षा में टेस्ट किया जाएगा। सबसे पहले उपग्रह अपने एंटीना को खोलेगा, जो कि 223 वर्ग मीटर (2400 वर्ग फीट) का होगा। यह पृथ्वी की निचली कक्षा में सबसे बड़ा वाणिज्यिक संचार एंटीना होगा, जिससे बड़े क्षेत्र में डायरेक्ट सिग्नल मुहैया कराए जा सकेंगे। उपग्रह का सही स्थिति में संचालन शुरू होने के बाद वाणिज्यिक सेवाएं शुरू होने से पहले इसका परीक्षण किया जाएगा। इसके लिए कुछ मोबाइल नेटवर्क पहले से तय किए गए हैं।
2. नेटवर्क फैलाने की शुरुआत
कंपनी सबसे पहले अमेरिका में चुनिंदा मोबाइल हैंडसेट में यह सुविधा मुहैया कराने का लक्ष्य रख रही है। हालांकि, बाद में अलग-अलग देशों के नियामकों से मंजूरी मिलने के बाद इसे वैश्विक स्तर पर लॉन्च किया जा सकता है।

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