धान-गेहूं की खरीदी नहीं करना चाहती सरकार

 

 केंद्र से मांगी केंद्रीकृत व्यवस्था की अनुमति, कांग्रेस ने बोला हमला
भोपाल। मध्यप्रदेश सरकार ने किसानों से गेहूं और धान की सरकारी खरीदी से हाथ खींचने का संकेत दिया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस संबंध में केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी को पत्र लिखते हुए कहा है कि राज्य सरकार भारी कर्ज के बोझ तले दब गई है, जिससे भुगतान और भंडारण संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। उन्होंने आग्रह किया है कि अब राज्य में धान और गेहूं की खरीदी केंद्रीकृत उपार्जन योजना के तहत की जाए।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने पत्र में उल्लेख किया है कि प्रदेश सरकार द्वारा बैंकों से ली गई उधारी की राशि 72,177 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है। इसके पुनर्भुगतान में कठिनाई आ रही है। पत्र में कहा गया है कि हाल के वर्षों में उपार्जन की मात्रा में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, गेहूं की खरीदी 77.74 लाख मीट्रिक टन और धान की खरीदी 43.49 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच चुकी है।  मुख्यमंत्री ने लिखा है कि स्टॉक के निराकरण में अत्यधिक समय लग रहा है और केंद्र से समय पर भुगतान न मिलने से राज्य को वित्तीय नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसलिए राज्य की ओर से विकेंद्रीकृत खरीदी के स्थान पर केंद्रीकृत व्यवस्था को अपनाने की अनुमति मांगी गई है।
कांग्रेस ने साधा निशाना
मुख्यमंत्री का पत्र सामने आने के बाद प्रदेश की राजनीति गरमा गई है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने इस निर्णय का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि भाजपा सरकार ने किसानों से गेहूं और धान की खरीदी करने से हाथ खड़े कर दिए हैं। यह किसानों के आर्थिक शोषण की नीति है। सरकार को यह फैसला तत्काल वापस लेना चाहिए।
वादा कर पीछे हट रही सरकार
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सोशल मीडिया पर लिखा है कि भाजपा सरकार ने प्रदेश के करोड़ों किसानों को संकट में डालने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। चुनाव में बढ़ा हुआ न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का वादा करने वाली भाजपा अब खरीदी से पीछे हट रही है। एफसीआई की जटिल प्रक्रिया के चलते बड़ी संख्या में किसानों की उपज रिजेक्ट हो सकती है और उन्हें औने-पौने दामों पर अपनी फसल बेचनी पड़ेगी।


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