Army: कोई देश अकेले सुरक्षित नहीं, साझा नवाचार ही मजबूत ढाल, डिफेंस कॉन्क्लेव में बोले जनरल उपेन्द्र द्विवेदी

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: हिमांशु चंदेल Updated Tue, 04 Nov 2025 10:21 PM IST

General Upendra Dwivedi: थलसेना प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने कहा कि आज के जटिल खतरों के दौर में कोई भी देश अकेले सुरक्षित नहीं रह सकता। उन्होंने साझा रक्षा नवाचार को सबसे मजबूत ढाल बताया।

No country is safe alone shared innovation strongest shield said General Upendra Dwivedi Defense Conclave
जनरल उपेंद्र द्विवेदी, सेना प्रमुख - फोटो : एएनआई

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भारत के थलसेना प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने कहा है कि आज के जटिल सुरक्षा माहौल में कोई भी देश अकेले सुरक्षित नहीं रह सकता। साझा रक्षा नवाचार ही सबसे मजबूत ढाल है। उन्होंने यह बात मंगलवार को आयोजित इंडिया डिफेंस कॉन्क्लेव 2025 में कही। यहां सेना, उद्योग और रक्षा विशेषज्ञों के वरिष्ठ प्रतिनिधि भी मौजूदजनरल द्विवेदी ने कहा कि भारत की ढाई मोर्चों की चुनौती और ऑपरेशन सिंदूर के बाद मिली आर्थिक सशक्तता ने सेना को विकास और नए उपकरणों की तैनाती में अधिक लचीलापन दिया है। उन्होंने कहा कि अब सशस्त्र बलों के पास स्पाइरल डेवलपमेंट और इंडक्शन के लिए बेहतर संसाधन हैं। सेना प्रमुख ने कहा कि युद्ध का स्वरूप अब लगातार बदल रहा है, इसलिए जरूरी है कि देश रक्षा अनुसंधान एवं विकास और नई तकनीकों में लगातार निवेश करे।
‘नवाचार ही भविष्य की ताकत’
सेना प्रमुख ने कहा कि युद्ध की अगली पीढ़ी किसी एक क्षेत्र या सिद्धांत से नहीं, बल्कि इस बात से तय होगी कि हम विचारों को कितनी तेजी से स्थायी क्षमताओं में बदल सकते हैं। उन्होंने कहा कि अवधारणा से क्षमता तक की यात्रा वास्तव में निर्भरता से प्रभुत्व तक की यात्रा ह  जनरल द्विवेदी ने कहा कि रणनीतिक साझेदारी एक अवसर का पुल है। अनुसंधान एवं विकास हमें यह सिखाता है कि हम क्या बना सकते हैं, जबकि रणनीतिक साझेदारी हमें यह बताती है कि हम क्या प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए ब्रह्मोस मिसाइल और के9 वज्र तोप को साझा नवाचार की सफलता बताया।                                                                                                                                                                                                         ‘शून्य से एक तक पहुंचना सबसे कठिन चरण’
उन्होंने कहा कि किसी भी अनुसंधान प्रयास की असली चुनौती शून्य से एक तक पहुंचने में होती है। एक बार यह उपलब्धि हासिल हो जाए, तो फिर एक से सौ तक पहुंचना आसान होता है। सेना प्रमुख ने कहा कि इसी चरण पर भारत को विशेष ध्यान देने की जरूरत है या फिर आवश्यकता पड़ने पर बाहरी सहयोग से तकनीक हासिल करनी होगी।
‘ड्रोन युद्ध और नई तकनीक में तेजी से निवेश जरूरी’
जनरल द्विवेदी ने कहा कि सेना अब दोहरे उपयोग वाली तकनीक को अपना रही है और लगातार उसमें सुधार कर रही है। उन्होंने कहा कि ड्रोन वॉरफेयर इसका जिंदा उदाहरण है। सेना क्वांटम, स्पेस और 6G जैसी राष्ट्रीय टेक्नोलॉजी मिशनों में भागीदार है।
उन्होंने कहा कि हमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता, साइबर, क्वांटम, स्पेस और एडवांस्ड मटेरियल जैसे क्षेत्रों में निवेश करना होगा, न केवल भविष्य की जरूरतों के लिए, बल्कि भारत के रक्षा निर्यात और विनिर्माण वृद्धि के लिए भी।
‘सेना में पूर्ण स्वचालन की दिशा में कदम’
थलसेना प्रमुख ने कहा कि अब सेना पूर्ण स्वचालन और मानव-रहित टीमों की दिशा में काम कर रही है। उन्होंने बताया कि सैनिकों की संख्या स्थिर रहेगी, लेकिन तकनीक के बेहतर उपयोग से उनकी दक्षता 1.5 से दो गुना बढ़ाई जाएगी। उन्होंने कहा कि उद्योग से हमारी अपेक्षा सिर्फ हार्डवेयर तक सीमित नहीं है, बल्कि उस उपकरण के अधिकतम उपयोग की दिशा में भी है।
‘अकादमिक, उद्योग और सेना का ट्रायो ट्रांसफॉर्मेशन’
जनरल द्विवेदी ने कहा कि भविष्य की सफलता के लिए अकादमिक, उद्योग और सेना की त्रिकोणीय साझेदारी जरूरी है। अगर विदेश में रणनीतिक साझेदारी सहयोग को दर्शाती है, तो देश के भीतर सैन्य-नागरिक एकीकरण उसकी जड़ को मजबूत करता है। 
उन्होंने कहा कि आज युद्ध केवल सीमाओं तक सीमित नहीं है। अब संघर्ष का रूप इतना तरल हो चुका है कि यह सीमाओं, क्षेत्रों या मैदानों में बंधा नहीं है। फिर भी भूमि ही विजय की मुद्रा बनी रहती है, उन्होंने कहा।
‘विचार, तकनीक और धैर्य से बनेगी जीत की राह’
सेना प्रमुख ने अपने भाषण के अंत में कहा कि युद्ध क्षमता का वास्तविक विकास एक सतत प्रक्रिया है। जिसमें विचार, तकनीक और धैर्य का संयोजन जरूरी है। उन्होंने कहा कि भारत को अपनी अत्याधुनिक रक्षा क्षमताएं खुद विकसित करनी होंगी, तभी आत्मनिर्भरता सशक्त अर्थ में संभव है।

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