हेरिटेज शराब नीति लागू तो हुई, पर गति नहीं पकड़ सकी

एक संयंत्र हुआ बंद, दूसरा बंद होने के कगार पर
भोपाल। मध्यप्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी हेरिटेज शराब नीति को लागू हुए लगभग तीन वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन यह पहल अब तक गति नहीं पकड़ सकी है। नीति के तहत स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से स्थापित किए गए दो हेरिटेज शराब निर्माण संयंत्रों में से डिंडोरी का संयंत्र सात-आठ महीने पहले बंद हो चुका है, जबकि अलीराजपुर का संयंत्र भी मुश्किल से संचालित हो रहा है।
सरकार की ओर से समर्थन मुख्यतः नीतिगत स्तर तक सीमित है। बीयर बारों को हेरिटेज शराब का स्टॉक रखने और उसे मेनू में शामिल करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, लेकिन उपभोक्ताओं की प्रतिक्रिया अपेक्षाकृत ठंडी रही है। अलीराजपुर में मोंड ब्रांड का उत्पादन करने वाली तकनीशियन अंकिता भाबर ने बताया कि मांग मुख्य रूप से भोपाल से आती है, जबकि अन्य जिलों में लगभग नगण्य रुचि है। उनके अनुसार, कुल उत्पादन का केवल आधा हिस्सा ही बिक पाता है। अधिक परिवहन लागत के कारण दूरस्थ क्षेत्रों में आपूर्ति अव्यवहारिक साबित हो रही है।
बताया जाता है कि स्थानीय बाजार में भी हेरिटेज शराब की मांग सीमित है, क्योंकि इसकी कीमत आम ब्रांडों की तुलना में अधिक है। खपत मुख्यतः सर्दियों के मौसम तक ही सिमट कर रह जाती है। डिंडोरी संयंत्र के बंद होने के पीछे कम बिक्री और खरीदारों द्वारा भुगतान में देरी को प्रमुख कारण बताया गया है। वहीं ग्वालियर और जबलपुर के कई बीयर बार संचालकों ने भुगतान में देरी की, जिससे हमारा संचालन असंभव हो गया।
 


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