वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 15 अप्रैल को सुनवाई कर सकता है। वहीं केंद्र सरकार ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल की है। सरकार की ओर से वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आदेश पारित करने से पहले सुनवाई की मांग रखी गई है।
वक्फ विधेयक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कुल 10 से अधिक याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें राजनेताओं, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलमा-ए-हिंद की याचिकाएं शामिल हैं। इन याचिकाओं में नए बनाए गए कानून की वैधता को चुनौती दी गई है। याचिका दायर करने वाले वकीलों ने बताया कि याचिकाएं 15 अप्रैल को एक पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किए जाने की संभावना है। हालांकि अभी तक यह शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर नहीं दिखाई दे रहा है
इन्होंने दायर की याचिका
द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके), कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी और मोहम्मद जावेद, एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी, राजद सांसद मनोज झा और फैयाज अहमद, आप विधायक अमानतुल्ला खान ने भी अधिनियम की वैधता को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में याचिका दायर की है। सात अप्रैल को मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल को यह आश्वासन दिया कि याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर विचार किया जाएगा। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से पेश हो रहे थे।क्या होती है कैविएट?
सुप्रीम कोर्ट में सरकार की ओर से कैविएट दाखिल करना एक कानूनी प्रक्रिया है, जो किसी व्यक्ति या संगठन को उसके खिलाफ किसी मामले में कोई आदेश पारित होने से पहले अपना पक्ष रखने का अवसर प्रदान करती है, ताकि एकपक्षीय फैसला न हो।
राष्ट्रपति ने दी थी मंजूरी
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पांच अप्रैल को वक्फ संशोधन अधिनियम को मंजूरी दी थी। इसे बजट सत्र के दौरान संसद ने पारित किया था। कानून मंत्रालय की अधिसूचना में कहा गया था कि राष्ट्रपति ने दोनों विधेयकों को अपनी मंजूरी दे दी है। चार अप्रैल को राज्यसभा ने विधेयक के पक्ष में 128 और विपक्ष में 95 मतों से इसे पारित किया था, जबकि लोकसभा ने लंबी बहस के बाद तीन अप्रैल को विधेयक को मंजूरी दे दी थी। यहां 288 सांसदों ने इसके पक्ष में और 232 ने इसके विरोध में मतदान किया था।