सुप्रीम कोर्ट की तरफ से राष्ट्रपति को विधेयकों पर समय से फैसला लेने के निर्देश के बाद लगातार रूप से इस मामले में बयानबाजी तेज हो गई है। इसी बीच अब इस मामले में भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट की भूमिका पर सवाल उठाया। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा कि अगर कोर्ट ही कानून बनाएगा, तो संसद भवन को बंद कर देना चाहिए।
'अपनी सीमाओं से बाहर जा रहा है सुप्रीम कोर्ट'
वहीं भाजपा सांसद ने सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि- मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और सुप्रीम कोर्ट इस देश में हो रहे सभी गृहयुद्धों के लिए जिम्मेदार हैं। सुप्रीम कोर्ट अपनी सीमाओं से बाहर जा रहा है। अगर हर बात के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना ही पड़े तो संसद और विधानसभाएं बंद कर देनी चाहिए।
संसद इस देश का कानून बनाती है- निशिकांत
बता दें कि भाजपा सांसद की यह टिप्पणी वक्फ (संशोधन) अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर चल रही सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और राष्ट्रपति को विधेयकों पर समय से फैसला लेने के कोर्ट के निर्देश के बाद आई है। हालांकि विपक्ष लगातार रूप से सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की सराहना कर रहा है। उन्होंने कहा- 'आप नियुक्ति करने वाले अधिकारी को निर्देश कैसे दे सकते हैं? राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश को नियुक्त करते हैं। संसद इस देश का कानून बनाती है। आप उस संसद को निर्देश देंगे?...आपने नया कानून कैसे बनाया? किस कानून में लिखा है कि राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर निर्णय लेना है? इसका मतलब है कि आप इस देश को अराजकता की ओर ले जाना चाहते हैं। जब संसद बैठेगी तो इस पर विस्तृत चर्चा होगी'।
कांग्रेस सांसद ने किया पलटवार
निशिककांत दुबे के बयान पर कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने पलटवार किया। उन्होंने कहा कि दुबे का बयान अपमानजनक है और यह सुप्रीम कोर्ट जैसे सम्मानित संस्थान पर सीधा हमला है। टैगोर ने कहा कि निशिकांत दुबे अक्सर देश की संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने की कोशिश करते हैं। उन्होंने कहा कि अब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को निशाना बनाया है। मुझे उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट के जज इस पर ध्यान देंगे, क्योंकि यह बयान संसद के बाहर दिया गया है। साथ ही टैगोर ने साफ कहा कि सुप्रीम कोर्ट पर इस तरह की टिप्पणी किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं की जा सकती।
इससे पहले उपराष्ट्रपति ने जाहिर की थी चिंता
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के उस निर्देश के बाद उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने चिंता जाहिर की थी। उन्होंने कहा था कि भारत में ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जहां न्यायाधीश कानून बनाएंगे और कार्यकारी जिम्मेदारी निभाएंगे और 'सुपर संसद' के रूप में काम करेंगे। उपराष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का जिक्र किया, जिसमें राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर विधेयक पर फैसला लेने की समयसीमा तय की गई है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि ऐसा पहली बार हुआ है, जब राष्ट्रपति को तय समय में फैसला लेने को कहा जा रहा है।
ऐसे दिन की कल्पना नहीं की थी'
इतना ही नहीं धनखड़ ने हालात पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि अपने जीवन में मैंने ऐसे दिन की कल्पना नहीं की थी। उन्होंने कहा था कि 'राष्ट्रपति देश का सबसे सर्वोच्च पद है। राष्ट्रपति संविधान की सुरक्षा की शपथ लेते हैं। जबकि सांसद, मंत्री, उपराष्ट्रपति और जजों को संविधान का पालन करना होता है। हम ऐसी स्थिति नहीं चाहते, जहां राष्ट्रपति को निर्देश दिए जाएं। आपको सिर्फ संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के तहत संविधान की व्याख्या का अधिकार है और वह भी पांच या उससे ज्यादा जजों की संविधान पीठ ही कर सकती है।