बाल संरक्षण आयोग ने स्वतः संज्ञान में लिया मामला
भोपाल। इंदौर में जैन परिवार की 3 साल 4 माह की बच्ची वियाना जैन की संथारा के बाद मृत्यु का मामला चर्चा में है। बच्ची के माता-पिता ने दिगंबर जैन संत अभिग्रहधार राजेश मुनि की सलाह पर उसे संथारा दिलवाया, जिसके कुछ मिनट बाद मासूम ने अंतिम सांस ली। इस घटना ने धार्मिक, कानूनी और नैतिक सवाल खड़े कर दिए मध्य प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने मामले का संज्ञान लिया और इंदौर जिला कलेक्टर से जवाब मांगा है।
मध्य प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य ओंकार सिंह ने कहा कि मीडिया रिपोर्टों के आधार पर हमने इस घटना का संज्ञान लिया है। हमने इंदौर के जिला कलेक्टर को नोटिस जारी करने का निर्णय लिया है। उन्होंने विशेष रूप से सवाल उठाया कि एक तीन वर्षीय बच्ची संथारा जैसी प्रथा के लिए सहमति कैसे दे सकती है। सिंह ने कहा कि हम जिला मजिस्ट्रेट से जवाब मांग रहे हैं और उनके उत्तर के आधार पर उचित कार्रवाई करेंगे। गौरतलब है कि वियाना, पियूष और वर्षा जैन की इकलौती बेटी थी। उसे दिसंबर 2024 में ब्रेन ट्यूमर का पता चला था। जनवरी 2025 में मुंबई में सर्जरी के बाद उसकी हालत में सुधार हुआ, लेकिन मार्च में स्थिति फिर बिगड़ गई। इसके बाद वियाना के माता-पिता 21 मार्च की रात को बीमार बेटी को जैन मुनि राजेश मुनि महाराज के दर्शन के लिए ले गए। महाराज ने उसकी हालत देखकर कहा कि उसका अंत निकट है और संथारा का व्रत दिलवाने की सलाह दी।
विरोध के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पर लगाई थी रोक
दरअसल, संथारा (सल्लेखना या समाधि मरण) जैन धर्म की एक प्राचीन प्रथा है, जिसमें व्यक्ति आध्यात् शुद्धि और सांसारिक मोह से मुक्ति के लिए स्वेच्छा से भोजन और पानी त्यागकर मृत्यु को गले लगाता है। बता दें कि 2015 में राजस्थान हाईकोर्ट ने संथारा को भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और 309 (आत्महत्या का प्रयास) के तहत अपराध घोषित किया था, लेकिन जैन समुदाय के विरोध और याचिकाओं के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी थी।