Khabron Ke Khiladi: क्या प्रोपेगेंडा युद्ध में पिछड़ गया भारत, विश्लेषकों ने बताया ऑपरेशन सिंदूर से क्या मिला

न्यूज डेस्क, अमर उजाला Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Sat, 17 May 2025 09:38 PM IST                                            भारत के खिलाफ प्रोपेगैंडा युद्ध छेड़ने वाले पाकिस्तान की पोल पट्टी अब पूरी दुनिया के सामने खुल रही है। इसी मुद्दे पर इस हफ्ते खबरों के खिलाड़ी पर चर्चा हुई।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान का हाल बेहाल है। संघर्ष खत्म होने से पहले ही विजय जुलूस निकालने वाले पाकिस्तान की सच्चाई एक-एक करके सामने आ रही है। जीत का दावा करने के बाद खुद उसी पाकिस्तान की ओर से हर दिन हार के निशान सामने आ रहे है। पाकिस्तानी मीडिया में आ रही तस्वीरों से वो खुद ही बेनकाब होता जा रहा है। इस हफ्ते ‘खबरों के खिलाड़ी’ में इसी पर चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार विनोद अग्निहोत्री, समीर चौगांवकर, पूर्णिमा त्रिपाठी, राकेश शुक्ल और अवधेश कुमार मौजूद रहे।
अवधेश कुमार: सीजफायर शब्द किसी भी भारतीय प्रवक्ता ने प्रयोग नहीं किया। चाहे सेना के अधिकारी हों, प्रधानमंत्री हों या फिर रक्षा मंत्री हों किसी ने भी सीजफायर शब्द का प्रयोग नहीं किया। भारत ने जो शब्द प्रयोग किया है वो है अंडरस्टैंड ऑफ स्टॉपिंग फायरिंग एंड मिलिट्री एक्शन। जब भारत ने कोई युद्ध किया ही नहीं है तो हमको सीजफायर कहां करना है। भारत का ऑपरेशन सिंदूर था। ऑपरेशन सीमित अवधि के लिए होता है। इसकी एक सीमा होती है। अमेरिका और पश्चिमी देशों की समस्या यह है कि उन्हें भारत से संबध रखना है, लेकिन अगर भारत इस तरह एक्शन करता रहा तो आने वाले समय में आंतकवाद से पीड़ित छोटे देश भारत के इर्दगिर्द एकत्रित होने लगेंगे और दुनिया का नेतृत्व भारत के हाथ में आएगा। इसलिए उन्हें समस्या है।
पूर्णिमा त्रिपाठी: नरेटिव दोनों तरफ से बन रहा है। अगर आपको लगता है कि भारत इस नरेटिव वार में कहीं पिछड़ गया तो उसकी केवल एक वजह है ट्रंप का ट्वीट करना। इस संघर्ष विराम में किसी तीसरे देश का कोई हाथ नहीं यह साफ करने में सरकार ने थोड़ी देर कर दी। इस देरी की वजह से ही नरेटिव गढ़ने का मौका मिल गया। प्रधानमंत्री ने आदमपुर एयरबेस पर जो भाषण दिया उसमें यह बिलकुल साफ कर दिया कि यह कोई सीजफायर नहीं है, ये सिर्फ अस्थायी है। अगर पाकिस्तान दोबार कुछ करेगा तो उसे उससे भी बड़ा जवाब दिया जाएगा। यही बयान अगर ट्रंप के ट्वीट के तुरंत बाद आ गया होता तो किसी को भी फॉल्स नरेटिव गढ़ने का मौका नहीं मिलता।
राकेश शुक्ल: ऑपरेशन सिंदूर अचानक क्यों धीमा पड़ा, इसका कोई तो बड़ा कारण रहा होगा। एक ऑपरेशन जो इतनी सफलता से चल रहा है उसे अगर आप अचानक रोक रहें तो कोई न कोई तो बड़ा कारण रहा होगा। जितनी भी चर्चाएं चल रही हैं वो घूम फिर कर न्यूक्लियर पर जाकर टिक जाती हैं। जहां तक तिरंगा यात्रा का सवाल है तो  इसमें भारत सरकार जागरुता ला रही है या राजनीति लाभ ले रही वो एक अलग विषय हो जाएगा। उस पर अलग से चर्चा की जा सकती है।
विनोद अग्निहोत्री: पहलगाम में जब घटना हुई तो पूरे देश में गुस्सा था। जनमानस चाहता था कि कोई कार्रवाई होनी चाहिए। विपक्ष भी सरकार पर सवाल खड़े कर रहा था। जब ऑपरेशन सिंदूर हुआ तो अचानक चीजें बदलीं। जब आप सरकार में होते हैं तो स्थितियां अलग होती हैं और जब आप विपक्ष होते हैं तो अलग होती हैं। किसी ट्रेड यूनियन के नेता को  आप कंपनी का चेयरमैन बना दीजिए तो आधी से ज्यादा मांगे तो वो खुद ही छोड़ देगा। ये स्वभाविक है।
समीर चौगांवकर: भारत ये मानकर चल रहा था कि तमाम देश उसके साथ आएंगे। कूटनीतिक स्तर पर सरकार को जो उम्मीद थी उस तरह से दुनिया के देशों ने उसे समर्थन नहीं दिया। सरकार से इस मामले में थोड़ी सी चूक जरूर हुई है। इस ऑपरेशन को अचानक से रोकने पर सवाल जरूर हुए। मुझे लगता है कि आने वाले समय में यह साफ होगा कि भारत ने यह कदम अचानक से क्यों उठाया।

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