कहीं गूंजेंगे सुप्रिया सुले के बोल, कहीं थरूर करेंगे पोल खोल: क्या है भारत का प्लान, जिससे घिरेगा पाकिस्तान?

स्पेशल डेस्क, अमर उजाला Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Sat, 17 May 2025 08:56 PM IST
मोदी सरकार की ओर से दुनिया में पाकिस्तान के आतंकवाद के खिलाफ संदेश पहुंचाने के लिए जो प्रतिनिधिमंडल तय किए हैं, उनके नेतृत्व और सदस्यों को लेकर क्या जानकारी सामने आ रही है?  पक्ष-विपक्ष के सांसदों का प्रतिनिधिमंडल बनाने का फैसला क्यों किया गया है? इसके राजनीतिक मायने क्या हैं? आइये जानते हैं...
भारत की तरफ से पाकिस्तान में छिपे आतंकियों के ठिकानों पर सधे वार से पड़ोसी देश में हलचल मची है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद से ही पाकिस्तान लगातार न सिर्फ खुद को हुए नुकसान के बारे में बात कर रहा है, बल्कि जाने-अनजाने में वो सबूत भी दे रहा है, जो वैश्विक पटल पर उसके आतंक के आकाओं के साथ संबंधों को भी दर्शा रहे हैं। मजेदार बात यह है कि पाकिस्तान भले ही भारत की तरफ से किए गए हमलों को आम नागरिकों पर हमला करार दे रहा हो और अपने सैन्य नुकसानों को लगातार छिपाने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन भारत ने इस बार अभियान चलाने के साथ ऐसे सबूत भी जुटा लिए हैं, जिससे लगातार उसकी पोल खुल रही है। 

जहां पहले भारत ने पाकिस्तान के एयरबेसों पर हमले से जुड़े सबूत पेश किए तो वहीं इससे पहले विदेश सचिव ने मुरीदके में मारे गए आतंकियों के जनाजे की तस्वीर साझा कर इसमें आतंकवादी और पाकिस्तानी सेना के एक साथ मौजूद होने की जानकारी भी पूरी दुनिया को दी। चौंकाने वाली बात यह है कि इस जनाजे में आतंकी रऊफ भी मौजूद था, जो कि अमेरिका की तरफ से वैश्विक आतंकी घोषित किया गया है।
रिपोर्ट्स की मानें तो भारत के पास ऐसे कई और सबूत हैं, जो वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय को मुहैया कराने जा रहा है। अब यह सबूत दुनिया तक पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार ने शनिवार को सात अलग-अलग नेताओं के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल का भी एलान कर दिया है। इन प्रतिनिधिमंडल में सिर्फ सरकार से जुड़े सांसद या मंत्री नहीं, बल्कि विपक्ष के सांसद भी शामिल होंगे। इनमें कांग्रेस के शशि थरूर, राकांपा की सुप्रिया सुले और द्रविड़ मुनेत्र कझगम की कनिमोझी के नाम शामिल हैं।
ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर मोदी सरकार की ओर से दुनिया में पाकिस्तान के आतंकवाद के खिलाफ संदेश पहुंचाने के लिए जो प्रतिनिधिमंडल तय किए हैं, उनके नेतृत्व और सदस्यों को लेकर क्या जानकारी सामने आ रही है?  पक्ष-विपक्ष के सांसदों का प्रतिनिधिमंडल बनाने का फैसला क्यों किया गया है? इसके राजनीतिक मायने क्या हैं? आइये जानते हैं...
प्रतिनिधिमंडल के नेतृत्व को लेकर किन-किन नेताओं के नाम सामने आए?
सांसदों के सात प्रतिनिधिमंडल दुनियाभर के देशों में जाकर आतंकवाद के मुद्दे पर भारत का पक्ष रखेंगे और पाकिस्तान को घेरने की कोशिश करेंगे। हर एक प्रतिनिधिमंडल में छह से सात सांसद और कई राजनयिक शामिल होंगे। हर प्रतिनिधिमंडल चार से पांच देशों का दौरा करेगा। कांग्रेस सांसद शशि थरूर के नेतृत्व वाले प्रतिनिधिमंडल को सबसे अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है।
इसके अलावा प्रतिनिधिमंडलों में जिन नेताओं को शामिल करने का फैसला लिया गया है, उनमें लगभग हर पार्टी के सांसदों को जगह देने की कोशिश की गई है, ताकि पूरी दुनिया में एकजुटता का संदेश दिया जा सके। इन सांसदों में अनुराग ठाकुर, अपराजिता सारंगी, मनीष तिवारी, असदुद्दीन ओवैसी, अमर सिंह, राजीव प्रताप रूडी, समिक भट्टाचार्य, बृज लाल, सरफराज अहमद, प्रियंका चतुर्वेदी, विक्रमजीत साहनी, सस्मित पात्रा, भुवनेश्वर कालिता भी प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा होंगे। पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद को भी इसमें शामिल किया गया है। हालांकि, वे फिलहाल सांसद नहीं हैं। सरकार ने टीएमसी सांसद सुदीप बंदोपाध्याय को भी शामिल किया था, लेकिन उन्होंने स्वास्थ्य कारणों से इनकार कर दिया।
केंद्र ने क्यों लिया पक्ष-विपक्ष के सांसदों का प्रतिनिधिमंडल बनाने का फैसला?
केंद्र सरकार की तरफ से पक्ष-विपक्ष के नेताओं को विदेश भेजे जाने वाले प्रतिनिधिमंडल में शामिल कराने के फैसले को लेकर हमने बात की सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी (सीएसडीएस) में सह-निदेशक और राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार से। उन्होंने सरकार के इस फैसले का विश्लेषण करते हुए कहा,
उन्होंने कहा, "इस तरह के मुद्दों के लिए जरूरी है कि सिर्फ सत्तासीन दल के सांसद और नेता ही नहीं, बल्कि सभी पार्टियों का ज्यादा से ज्यादा प्रतिनिधित्व बढ़ाया जा सके। उतना ही यह स्वागतयोग्य कदम होगा। इस तरह की जितनी भी समितियां हैं, उसमें अलग-अलग पार्टियों के नुमाइंदे होने भी चाहिए और सरकार ने यही कदम लिया है।"
अमेरिका के लिए शशि थरूर को भेजने की जरूरत क्यों?
संजय कुमार के मुताबिक, अमेरिका अपने आप को कुछ अलग मानता है। वह अपने आप को भेड़चाल से अलग बताता रहा है। वह कहता रहा है कि हम दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश हैं। इसलिए उनको अलग तरह से हैंडल किए जाने की जरूरत है। इसके लिए अलग तरह की कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय अनुभव की जरूरत है। ऐसा नहीं है कि सरकार में ऐसे नेता नहीं हैं, जो अमेरिका से बात नहीं कर सकते। खुद विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी दुनियाभर का अनुभव रखते हैं, वे विदेश सचिव भी रह चुके हैं, लेकिन थरूर को देखा जाए तो देश से ज्यादा अनुभव उनका विदेश के संस्थानों का है। वे संयुक्त राष्ट्र में भी रह चुके हैं।
ऐसे में सरकार संभवतः यह चाहती है कि उनके कौशल का फायदा उठाया जाए और दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण देश से डील करने के लिए उन्हें आगे लाया जाए। अमेरिका के साथ डिप्लोमेसी काफी चुनौतीपूर्ण होगी। शायद इसलिए सरकार ने शशि थरूर को यह जिम्मेदारी देने की सोची होगी।
इन खास नेताओं को नेतृत्व सौंपे जाने के मायने क्या?
संजय कुमार ने कहा कि सरकार की तरफ से कुछ खास नामों को प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व सौंपे जाने की मुख्यतः तीन मंशाएं दिखती हैं।
पहला- वृहद राजनीतिक प्रतिनिधित्व
यह वैश्विक मुद्दे पर भारत के राजनीतिक चेहरों का विस्तृत प्रतिनिधित्व दर्शाता है। अगर आप देखेंगे तो प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व सिर्फ भाजपा के नेता नहीं कर रहे, बल्कि इसमें एनडीए की साथी पार्टी शिवसेना के नेता- श्रीकांत शिंदे, जदयू के संजय कुमार झा शामिल हैं। इसके अलावा विपक्षी दलों से राकांपा की सुप्रिया सुले, कांग्रेस के शशि थरूर और द्रमुक की कनिमोझी का नाम शामिल है। प्रतिनिधिमंडल के नेतृत्व के लिए सिर्फ दो नाम- रविशंकर प्रसाद, बैजयंत जय पांडा ही भाजपा की तरफ से चुने गए। साफ तौर पर यह वृहद राजनीतिक प्रतिनिधित्व के तौर पर देखा जा सकता है।
दूसरा- लैंगिक प्रतिनधित्व
इसके अलावा प्रतिनिधिमंडल के नेतृत्व के लिए दो महिला नेताओं के नाम लिए गए हैं। एक सुप्रिया सुले और दूसरी कनिमोझी करुणानिधि। यह दोनों ही नेता राजनीति में अपनी वाकपटुता और राजनीतिक गलियारों में अपनी-अपनी पार्टियों के मुद्दे जोर-शोर से उठाने के लिए जानी जाती हैं।
तीसरा- क्षेत्रीय पृष्ठभूमि के नेताओं का प्रतिनिधित्व
प्रोफेसर कुमार के मुताबिक, जिन नेताओं को प्रतिनिधिमंडल के नेतृत्व के लिए चुना गया है उनकी पृष्ठभूमि भी अलग-अलग होगी। चाहे वह पेशेवर पृष्ठभूमि की बात हो या क्षेत्रीय पृष्ठभूमि की।
उदाहरण के तौर पर शशि थरूर खुद अंतरराष्ट्रीय स्तर के जाने-माने चेहरे और पूर्व में राजनयिक रहे हैं। इसी तरह रविशंकर प्रसाद एक वकील हैं। कनिमोझी राजनीति में आने से पहले पत्रकारिता कर चुकी हैं। ऐसे ही बाकी नेताओं की पेशेवर पृष्ठभूमि भी अलग है, जो कि अलग-अलग देशों में अलग-अलग तरह से काम आएगी। इन सभी नेताओं को इनके कौशल के हिसाब से ही प्रतिनिधिमंडल और देश सौंपे गए हैं।
इसके अलावा भारत की तरफ से जो प्रतिनिधिमंडल बनाए गए हैं, उनका नेतृत्व करने वाले नेताओं की पृष्ठभूमि को भी काफी विस्तृत रखा गया है। दक्षिण से शशि थरूर केरल के तिरुवनंतपुरम से सांसद हैं, वहीं कनिमोझी तमिलनाडु से हैं। बैजयंत जय पांडा पूर्वी भारत के ओडिशा से हैं। सुप्रिया सुले और श्रीकांत शिंदे मध्य भारत के महराष्ट्र से हैं। रविशंकर प्रसाद और संजय कुमार झा बिहार से हैं।  

Leave Comments

Top